Saturday, October 6, 2012

ब्रेसों ने कहा



मेरे लिए कैमरा एक स्कैच बुक है, इंट्यूशन और स्वतःस्फूर्तता का एक उपकरण, उस पल का उस्ताद, जो चाक्षुष मायनों में एक ही साथ सवाल भी करता है और फैसला भी ले लेता है. संसार को कोई अर्थ देनेके लिए आप को उसके साथ शामिल होना पड़ता है जिसे आप व्यूफ़ाइंडर के ज़रिये फ्रेम कर रहे होते हैं. इस प्रवृत्तिक को हासिल करने के लिए ध्यान, दिमागी अनुशासन, संवेदना और रेखागणित का सेन्स इन सब की दरकार होती है. साधनों की किफ़ायत से आप अभिव्यक्ति की साधारणता तक पहुँचते हैं.

एक फोटो खींचने का मतलब हुआ सारी मानसिक शक्तियां सतत भाग रही एक वास्तविकता पर केन्द्रित हो रही हों और आप अपनी सांस रोके हों. ऐसे पल किसी छवि पर निपुणता हासिल कर सकना महान दैहिक और बौद्धिक आनंद में बदल जाता है.

एक फोटो खींचने का मतलब हुआ एक सेकेण्ड के हिस्से में एक ही साथ तथ्य को और विजुअली महसूस किए गए आकारों को सश्रम व्यवस्थित कर सकना जो उसे अर्थ प्रदान करते हैं.

यह एक ही धुरी पर अपने मस्तिष्क, आँखों और दिल को रखने जैसा होता है.

(विश्व के चंद बड़े फोटोग्राफरों पर इन दिनों कबाड़खाने पर लग रही सीरीज के बहाने मैं ओनरी कार्तिएर ब्रेसों पर काफी पहले लगाई गयी एक पोस्ट को दुबारा लगा रहा हूँ.)


फ़ोटोग्राफ़ी में एक खास मूड, एक खास क्षण को पकड़ा जाना सबसे महत्वपूर्ण होता है. तकनीकी भाषा में इसे decisive moment कहा जाता है. ब्रेसों का कथन है: "There is nothing in this world that does not have a decisive moment."

फ़्रांसीसी मूल के ओनरी कार्तिएर ब्रेसों (२२ अगस्त १९०८ - ३ अगस्त २००४) को आधुनिक फ़ोटोपत्रकारिता का जनक माना जाता है. उनके बारे में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि फ़ोटोपत्रकारों की कई पीढ़ियां उनसे प्रभावित रहीं और अपने जीवन काल में ही वे एक कल्ट के तौर पर स्थापित हो चुके थे.

इन्दौर में रहने वाले श्री सुशोभित सक्तावत ने मुझे ब्रेसों के कुछ फ़ोटोग्राफ़ मेल से भेजे. क्यों न उन्हें आप के साथ शेयर किया जाए.

मशहूर शिल्पकार अल्बेर्तो ज्याकोमेती एक प्रदर्शनी में

चीन, दिसम्बर १९४८
फ़्रांस, १९६८
फ़्रांस,१९३२
फ़्रांस, १९३२
फ़्रांस, द वार डिपार्टमेन्ट


वडोदरा, गुजरात, १९४८

इटली, १९५१

हाइड पार्क, लन्दन, १९३७


विख्यात पेन्टर ओनरी मातीस अपने घर में

मैक्सिको सिटी, १९३४

पेरिस, १९५९

लूसियाना, अमेरिका, १९४७

मैनहटन, अमेरिका, १९४७



"Photography is not like painting, There is a creative fraction of a second when you are taking a picture. Your eye must see a composition or an expression that life itself offers you, and you must know with intuition when to click the camera. That is the moment the photographer is creative.Oops! The Moment! Once you miss it, it is gone forever." - ब्रेसों (द वॉशिंगटन पोस्ट को दिए गए एक इन्टरव्यू का हिस्सा, १९५७)

एक तरह से सुशोभित सक्तावत साहब की ही वजह से यह पोस्ट लगाई जा रही है, सो उन्हें शुक्रिया भी!

No comments: