Thursday, November 22, 2012

ध्रुपद- दो..... पंडित उदय भवालकर


किसी राग में वादी, संवादी या और ऐसे ही मुख्य हिस्सों पर जोर देते हुए उन्हें धीरे-धीरे विकसित करना आलाप है. इसे विस्तार भी कहते हैं. आलाप में बोल नहीं होते. बंदिश नहीं होती. राग और गायन के बीच यह एक बतकही है. ध्रुपद में इसकी अहमियत बहुत ज्यादा है.

कालिदास के महाकाल के इलाके (उज्जैन) के पंडित उदय भवालकर ध्रुपद परम्परा के एक मजबूत स्तम्भ हैं. वे डागर घराने के शिष्य हैं. उनके स्वर हमारी चेतना को एक सम शान्ति से भर देते हैं. जब तक उनके जैसे प्रतिबद्ध ध्रुपदिये हमारे बीच हैं, ध्रुपद बढ़ता और फलता-फूलता रहेगा. ध्रुपद संगीत के विस्तार में लगे पंडित उदय भवालकर संगीत के बेहतरीन शिक्षक भी हैं.   

ध्रुपद की पिछली कड़ी को आगे बढाते हुए आइये सुनते हैं पंडित उदय भवालकर का राग बागेश्री के साथ आलाप



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