Sunday, November 25, 2012

जैसी पाँचवीं कक्षा में गणित मेरे लिए वैसी इस शहर में भीड़ थी


दिल्ली की नगरिकता

- असद ज़ैदी

जैसी पाँचवीं कक्षा में गणित मेरे लिए वैसी इस शहर में भीड़ थी
फ़्लैशबैक ख़त्म हुआ. बारिश में भीगता एक रोज़ चला जाता था
कि एक भली औरत ने मुझे एक छाता दिया जो मैंने ले लिया
बिना कुछ बोले अंत में एक दिन एक मक़ाम पर हम विदा हुए
कहिए श्रीमान कैसे हैं ? यह एक दोस्त का ख़त था शहर के
दूसरे कोने से
मैं वहाँ गया
गलियों में बदबू थी अँधेरा कुछ नहीं कहता था
उस दोस्त ने दाँत चमकाए
और मुझे प्यार से खाना खिलाया
वहाँ की हर चीज़ मेरा मुँह देखती थी
हमने थॊड़ी शराब पी ली रेडियो भर्रा रहा था
फटे गले से कोई गाता जाता था
अचानक एक विश्वास मुझमें आने लगा चाहे कुछ भी हो
मैं अनंतकाल तक ज़िन्दा रहूँगा

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