अधूरी बातें – २
-शुभा
सभी
औरतें तान्त्रिक होती हैं,
उनके अनुष्ठान न दिखने वाले होते हैं. मैंने ही
कहीं लिखा है - औरतें इच्छाएं पैदा करती हैं और ज़मीन में गाड़ देतीं हैं. ये ज़मीन उनके
जीवन के अन्दर रहती है. इस ज़मीन पर वे एकान्त में और कई बार अपने से भी छिपाकर अनेक
अनुष्ठान करती हैं. वे किसी को दुआएं भेजती हैं, वे जिसे प्यार करती हैं उसके पास अपना स्पर्श भेजती हैं, वे बददुआएं कोसने, शाप और वरदान भेजती हैं - वे आकार और सार की साधनाएं
करती हैं. ये सब उत्पीड़ितों के औज़ार हैं. वे मरे हुओं को ज़िन्दा कर लेती हैं उनके साथ
बहुत समय रहती हैं. बिछड़े हुए उनके साथ रहते हैं और इच्छित लोग उनके साथ रहते हैं.
ये उत्पीड़ितों के हथियार हैं. इस अन्दर की दुनिया में सम्बन्घों के नियम अलग हैं, सार अलग.
एक हंगेरियन
कहानी में २५ साल अपने पति से चरित्रहीन के रूप में मार खाती अपमानित और जर्जर होती
औरत ने बीथोविन से प्यार किया था - शायद एक दिन, शायद एक साल और उसके दो जवान लड़के उससे नफ़़रत करते हैं. २५ साल बाद उन्हें
पता चलता है कि उनकी माँ ने बीथोविन से प्यार किया था. वे दोनो लड़के संगीतकार हैं.
वे २५ साल बाद माँ से कहते हैं हमें ‘उस’
के बारे में बताओ. नफ़़रत और ठोकरों के बीच वह जर्जर
औरत बीथोविन के सार को कैसे याद रखती है, कैसे उसे अपने पति के लड़कों में उतार देती है. क्या २५ साल पिटती औरत
को देखकर कोई जान सकता था कि वह असल में क्या कर रही है? उत्पीड़ितों की इस शक्ति को क्या कहा जाए? एक तरह से उनमें बहुत ‘आध्यात्मिकता’ होती है,
इसे घिसी-पिटी भाषा में कहें कि ‘सहनशक्ति’ होती है लेकिन यह सिर्फ़ सहना नहीं है यह उत्पीड़ितों द्वारा सहते हुए
बनाना है. बीथोविन ने महान संगीत की रचना की और इस स्त्री ने उससे भी दुष्कर कार्य
किया. इस कार्य को क्या नाम दिया जा सकता है?
(‘जलसा’
पत्रिका से साभार)
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