स्टैनफोर्ड के सालाना यात्रा सम्भाषण सत्र २००१ के विशिष्ट मेहमान के तौर पर बिल ब्राइसन अपने लेखन और यात्राओं के बारे में अपने ढाई हज़ार प्रशंसकों से बात करने को लंदन पधारे थे. डगलस शुल्ज़ द्वारा लिए गए इस साक्षात्कार की पूरी ट्रान्सक्रिप्ट प्रस्तुत है –
परिचय
ज़ाहिर है, बात घिसी पिटी है कि हमारे मेहमानों का
परिचय दिए जाने की ज़रुरत नहीं पड़ती, लेकिन आप में से जो भी
तुरंत किसी और नक्षत्र से यहाँ पहुँच कर इस रात इस हॉल में आ पहुंचे हैं उनकी
जानकारी के लिए मैं पुष्टि कर सकता हूँ कि हमारे वक्ता जनाब बिल ब्राइसन इस ग्रह
के सबसे पसंदीदा यात्रावृत्त लेखक हैं.
यह न सिर्फ
उनकी छः यात्रा-पुस्तकों की स्तब्धकारी बिक्री है जिसने उन्हें यह सम्मान दिया है, तथ्य यह भी है कि उनकी किताबें इतनी सुगम्य,
सचेतन और सबसे ऊपर आश्चर्यजनक रूप से मजाकिया हैं. यात्रावृत्तों
में उनका वही स्थान है जो पाकविद्या में डेलिया स्मिथ और बच्चों की किताबों में
जे. के. राउलिंग का. दूसरे शब्दों में कहूं तो वे सर्वश्रेष्ठ हैं.
आप लोगों में
जो चौकस हैं उन्होंने गौर किया होगा कि हालाँकि हमने इस का प्रचार एक यात्रा
सम्भाषण के रूप में किया था, बिल किसी स्क्रीन के सामने तीखी नोंक वाली छड़ी लिए नहीं खड़े हैं. इसके
बजाय हमारी योजना यह है कि बिल और मैं करीब एक घंटे आपस में गपशप करेंगे और यह
दिखाने की कोशिश करेंगे कि दो हज़ार लोग हमारी बातें नहीं सुन रहे हैं, और बीच बीच में मैं बिल से अपनी किताबों से कुछ हिस्से पढ़कर सुनाने का
निवेदन भी करूंगा ताकि सिर्फ मुझे ही न बोलना पड़े. और आखिर में हम कुछ समय आपके उन
प्रश्नों के लिए रखेंगे जिन्हें पूछने से मैं रह गया होऊं.
बिल ब्राइसन - ... और उस के बाद मैं एक ड्रिंक के
लिए जा रहा हूँ!
जब मैंने बिल
को इस प्लान के बारे में बताया था कि वे मेरे हर सवाल का जवाब हाँ या न में देंगे
ताकि आपको मेरी मदद करनी पड़े, बिल ने मुझ से इस का वायदा किया था.
ठीक है बिल, मैं बिलकुल शुरू से शुरू करने जा रहा हूँ,
जैसे पार्किन्संस करती है, देस मोइनेस,
आयोवा में आपके बचपन से. क्या आपका बचपन सुखी था?
दर असल हाँ.
मेरा बचपन बेहद सुखी था. मेरे ख्याल से इसका बड़ा हिस्सा इस बात पर निर्भर था कि
मैं पचास के दशक में बड़ा हुआ. अमेरिका में पचास के दशक में बड़ा होना एक तरह से
स्वर्णयुग में जीने जैसा था. अभी एक दिन मैं सोच रह था कि उन दिनों में ऐसा क्या
ख़ास था, तो वह महान आशावाद का समय था.
युद्ध बीत चुका था, अर्थव्यवस्था चढ़ाव पर थी. स्पष्टतः
अमेरिका उस तरह की बहाली नहीं करनी पडी जैसे यूरोप के लोगों को करनी पडी सो जब
अमेरिका युद्ध से बाहर आया तो उसकी स्थिति बहुत मज़बूत थी और उसके सारे उद्योग तब
भी सुरक्षित थे. बस हमने टैंक बनाने बंद कर दिए और टेलीविजन और फ्रिज बनाना चालू
कर दिया. सो यह अमेरिका में एक महान विकास का दौर था.
लेकिन वह उस
वक्त भी एक ख़ासा सादगीभरा समय था. दो लेन वाले राजमार्गों का समय. और मेरे ख्याल
से तब प्रवृत्तियाँ भी फ़र्क़ थीं. आयोवा,
जहां मैं बड़ा हुआ, वहां लोग एक ख़ास अंदाज़
में लातीफागोई करते थे जैसा अब नहीं करते, और वे उसकी कद्र
करते थे, जिस तरह मैं समझता हूँ ब्रिटिश लोग अब भी करते हैं.
हाज़िरजवाबी और ठठ्ठे और इस तरह की चीज़ें.
अब क्यों नहीं
करते?
मेरे ख्याल से
लोग अब पैसा कमाने और ज़िन्दगी में आगे बढ़ने में ही संतुष्ट हो चुके हैं, और अमेरिका में हाज़िरजवाबी एक तरह की बाधा
बन चुकी है. मिसाल के लिए मैं सचमुच सोचता हूँ कि अगर मैं किसी ब्रिटिश कम्पनी में
काम कर रहा होता तो मेरे बारे में इस तरह बातें होतीं – “अरे
डग, सही बन्दा है यार. क्या चीज़ है. ऑफिस के बाद उसके साथ
एक एक बीयर खींचने का मज़ा अलग है,” लेकिन अमेरिकी कम्पनी में
यह इस तरह होगा – “डग का पता नहीं. मुझे नहीं मालूम वो इस
प्रोग्राम में हमारे साथ है भी या नहीं. और वो उतना सीरियस भी नहीं है.” और मुझे लगता है यह कितने शर्म की बात है.
जब मैं बच्चा
था, खूब हंसी ठठ्ठा हुआ करता था.
मेरे पिताजी शब्दों के साथ खेलने में माहिर थे.
तो अब हमें
पता लग रहा है कि आप में वो बात आई कहाँ से! क्या आपके बचपन में ऐसे कोई संकेत थे
कि आप बड़े होकर यात्रावृत्त लेखक बनने वाले हैं? मिसाल के लिए क्या आप कसम खाकर कहेंगे कि
अपनी हाईस्कूल ईयर बुक में आपने लिखा था कि आप दुनिया के सर्वप्रिय यात्रावृत्त
लेखक बनने जा रहे हैं?
नहीं, मैंने यात्रावृत्त लेखक बनने की कभी सोची
ही नहीं और मैं अपने आप को अब भी यात्रावृत्त लेखक नहीं समझता.
मैं तो एक
आदमी हूँ जो किताबें लिखता है. मैंने अपने को हमेशा किराये में ली गयी एक कलम समझा
है, जो इस बात पर खुश है कि लोग
मुझे लिखने के एवज में पैसा देंगे. बस यह हुआ कि मैं यात्राओं की दिशा में निकल
पड़ा. मैंने ‘द लॉस्ट कंटीनेंट’ लिखी
जो तकनीकी रूप से एक यात्रावृत्त है पर मैंने उसे एक संस्मरण की तरह अधिक देखा. वह
अमेरिका में बड़े होने के बारे में थी. मैंने उसे कभी भी यात्रावृत्तों की
श्रृंखला की शुरुआत के तौर पर नहीं देखा, लेकिन हुआ यह कि उस
पर अच्छी बातें कही गईं और प्रकाशकों ने मुझे उत्साहित किया कि मैं उसी धारा में
चलता जाऊं और यात्रावृत्त लिखूं. शुरू में मैं और तरह की किताबें भी लिख रहा था,
जैसे कि भाषा पर. वो हाशिये में चली गईं लेकिन मुझे उम्मीद है मैं
उन तक वापस लौटूंगा.
क्या आपको
काफी पहले पता चल गया था कि आप लेखक बनने वाले हैं?
मुझे पता था
कि संभवतः मैं किसी न किसी तरह से शब्दों के साथ काम करने वाला हूं. अंग्रेज़ी
इकलौती चीज़ थी जिसमें मैं ठीकठाक था और हमारा पुश्तैनी अखबार हमारा पुश्तैनी धंधा
था. मेरे माता-पिता दोनों स्थानीय अखबार के लिए काम करते थे. मेरा भाए जो मुझसे नौ
साल बड़ा और इस लिहाज़ से मेरे जीवन में एक स्थानापन्न वयस्क था, भी स्थानीय अखबारों में काम करता था. सो
रात को खाने की मेज़ पर यही बातें होती थीं और मुझे किसी और चीज़ का ख़याल ही नहीं
आया. तय था कि मैं कोई न्यूक्लियर साइंटिस्ट या जानवरों का डाक्टर नहीं बनने जा
रहा था. मुझे अपने बिलकुल शुरुआती क्षणों से बस पता था कि मैं शब्दों के साथ काम
करूंगा.
मेरा दूसरा
सवाल यह है कि आप ने देस मोइनेस छोड़ क्यों दिया? ‘द लॉस्ट कंटीनेंट’ की
विख्यात शुरुआती पंक्तियों को उद्धृत करें तो –
“जब आप देस मोइनेस के रहनेवाले
होते हैं तो आप या तो इस तथ्य को बिना कोई सवाल किये स्वीकार कर लेते हैं और बॉबी
नाम की किसी लडकी के साथ शादी कर के फायरस्टोन फैक्ट्री में नौकरी पाकर हमेशा
हमेशा के लिए वहीं रहें या आप अपना लड़कपन लम्बे समय तक इस बात का रोना रोते हुए
गुजारें कि यह क्या कूड़ा जगह है और आप इस जगह को छोड़ कर जाने तक का इंतज़ार नहीं कर
सकते और तब आप बॉबी नाम की किसी लडकी के साथ शादी कर के फायरस्टोन फैक्ट्री में
नौकरी पाकर हमेशा हमेशा के लिए वहीं रहें.”
उस नियति से
आप कैसे बच सके?
मैं, बस ऐसे ही चला आया. और यह वाक़ई अजीब था
क्योंकि सारे हाईस्कूल भर जैसा कि मेरे ख्याल से उस समय हाईस्कूल में सारे ही लोग
कहा करते थे “हे भगवान, मैं ग्रेजुएट
होकर यहाँ से बाहर जाने का इंतज़ार नहीं कर सकता.” और जब ऐसा
हो गया हो मैं निकल पड़ा और मैंने यह तक सोचा कि हर कोई मेरे साथ आ रहा है मगर
सारे वहीं रहे और सब ने फायरस्टोन फैक्ट्री में नौकरी पा ली.
मैं बाहर
निकलने का इंतज़ार नहीं कर सकता था क्योंकि देस मोइनेस इस कदर हैबतनाक था, लेकिन मुझे हमेशा यह सघन होश रहता था कि
मैं बड़ा हो रहा हूँ और असल संसार कहीं और है. अपने बचपन के शुरुआती दिनों से ही
मैं ‘नेशनल जियोग्राफ़िक’ की तस्वीरें
देखकर बहुत प्रभावित होता था. हर जगह इतनी अच्छी और इतनी दिलचस्प और भरपूर और
सुन्दर दिखती थी और ऐसा लगता था कि लोग काफी रोमांचक जीवन जी रहे हैं और मैं भी
बाहर निकलकर वैसा थोड़ा कुछ करना चाहता था. सो जैसे ही मुझे मौका मिला मैं निकल आया
और संयोगवश यहाँ पहुँच गया. ब्रिटेन में.
(जारी)
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