Saturday, December 29, 2012

आजादी, बराबरी और इंसाफ तथा उसके लिए प्रतिरोध महान जीवन मूल्य है : जन संस्कृति मंच



बलात्कारियों का प्रतिरोध करने वाली युवती की मौत पर जसम की शोक संवेदना

हम उस बहादुर लड़की के प्रतिरोध का गहरा सम्मान करते हैं, जिसने विगत 16 दिसंबर की रात अपनी आजादी और आत्मसम्मान के लिए अपनी जान को दांव पर लगा दिया और बलात्कारियों द्वारा नृशंस तरीके से शरीर के अंदरूनी अंगों के क्षत-विक्षत कर देने के बावजूद न केवल जीवन के लिए लंबा संघर्ष किया, बल्कि न्याय की अदम्य इच्छा के साथ शहीद हुई. आजादी, बराबरी और इंसाफ तथा उसके लिए प्रतिरोध महान जीवन मूल्य है, जिसकी हमारे दौर में बेहद जरूरत है. जन संस्कृति मंच लड़की के परिजनों और करोड़ों शोकसंतप्त लोगों की प्रति अपनी संवेदनात्मक एकजुटता जाहिर करता है. 

यह गहरे राष्ट्रीय और सामाजिक-सांस्कृतिक शोक की घड़ी है. हम सबके दिल गम और क्षोभ से भरे हुए हैं. हमारे लिए इस लड़की का प्रतिरोध इस देश में स्त्रियों को साथ हो रहे तमाम जुल्मो-सितम के प्रतिरोध की केंद्रीय अभिव्यक्ति रहा है. जो राजनीति, समाज और संस्कृति स्त्रियों की आजादी और बराबरी के सवालों को अभी भी तरह-तरह के बहानों से उपेक्षित कर रही है या उनके प्रति असंवेदनशील है या उनका उपहास उड़ा रही है, उनको यह संकेत स्पष्ट तौर पर समझ लेना चाहिए कि जब स्वतंत्रता, सम्मान और समानता के अपने अधिकार के लिए जान तक कुर्बान करने की घटनाएं सामने आने लगें, तो वे किसी भी तरह वक्त को बदलने से रोक नहीं सकते. 

इस देश में स्त्री उत्पीड़न और यौन हिंसा की घटनाएं जहां भी हो रही हैं, उसके खिलाफ बौद्धिक समाज, संवेदनशील साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों और आम नागरिकों को वहां खड़ा होना होगा और जाति-संप्रदाय की आड़ में नृशंस स्त्री विरोधी मानसिकता और कार्रवाइयों को संरक्षण देने की प्रवृत्ति का मुखर मुखालफत करना होगा, समाज, प्रशासन तंत्र और राजनीति में मौजूद स्त्री विरोधी सामंती प्रवृत्ति और उसकी छवि को मौजमस्ती की वस्तु में तब्दील करने वाली उपभोक्तावादी अर्थनीति और संस्कृति का भी सचेत प्रतिवाद विकसित करना होगा, यही इस शहीद लड़की के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी. अनियंत्रित पूंजी की संस्कृति जिस तरह हिंस्र आनंद की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही और जिस तरह वह पहले से मौजूद विषमताओं को और गहरा बना रही है, उससे मुकाबला करते हुए हमें एक बेहतर समाज और देश के निर्माण की ओर बढ़ना होगा.

आज इस देश की बहुत बड़ी आबादी आहत है और वह अपने शोक की सार्वजनिक अभिव्यक्ति करना चाहती है, वह इस दुख के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर करना चाहती है, लेकिन उसके दुख के इजहार पर भी पाबंदी लगाई जा रही है. इस देश की राजधानी को जिस तरह पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है, जिस तरह मेट्रो बंद किए गए हैं, जिस तरह बैरिकेटिंग करके जनता को संसद से दूर रखने की कोशिश की गई है, वह दिखाता है कि इस देश का शासकवर्ग जनता के शोक से भी किस तरह खौफजदा है. अगर जनता के दुख-दर्द से इस देश की सरकारों और प्रशासन की इसी तरह की दूरी बनी रहेगी और पुलिस-फौज के बल पर इस तरह लोकतंत्र चलाने की कोशिश होगी, तो वह दिन दूर नहीं जब जनता की वेदना की नदी ऐसी हुकूमतों और ऐसे तंत्र को उखाड़ देने की दिशा में आगे बढ़ चलेगी. 


सुधीर सुमन, जसम राष्ट्रीय सहसचिव द्वारा जारी