कवि-आलोचक पंकज चतुर्वेदी द्वारा
किए गए ये अनुवाद गिरिराज किराडू और राहुल सोनी के सम्पादन में निकलने वाली द्विभाषी
पत्रिका प्रतिलिपि के नवम्बर २०११ के अंक में छपी थीं. अगले कुछ अनुवादों को वहीं
से साभार लिया गया है –
केयूरा न विभूषयन्ति पुरुषं हारा
न चन्द्रोज्ज्वला
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालंकृता मूर्धजाः ।
वाण्येका समलंकरोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्ते अखिल भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम् ॥
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालंकृता मूर्धजाः ।
वाण्येका समलंकरोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्ते अखिल भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम् ॥
न भुजबन्ध
मनुष्य की शोभा
बढ़ाते हैं
न चन्द्रमा के समान
धवल हार
न स्नान
न अंगराग
न पुष्प
न अलंकृत
केश-पाश
एक वाणी ही
मनुष्य को
समलंकृत
करती है
अगर वह
सुसंस्कृत रूप में
धारण की जाय
समस्त आभूषण
क्षय को
प्राप्त
होते हैं
पर वाणी का
भूषण
अमर भूषण है
मनुष्य की शोभा
बढ़ाते हैं
न चन्द्रमा के समान
धवल हार
न स्नान
न अंगराग
न पुष्प
न अलंकृत
केश-पाश
एक वाणी ही
मनुष्य को
समलंकृत
करती है
अगर वह
सुसंस्कृत रूप में
धारण की जाय
समस्त आभूषण
क्षय को
प्राप्त
होते हैं
पर वाणी का
भूषण
अमर भूषण है
2 comments:
"word gets its meaning by the person using it"
सत्य है , मीठी वाणी का महत्व असंदिग्ध है । मिसाल के तौर पर राजीव शुक्ला जी को लीजिए मीठी वाणी के बल पर भारत में क्रिकेट को कंट्रोल करते हैं जबकि गेंद या बल्ले से उनका कोई नाता नहीं ।
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