-अनुवाद : मंगलेश डबराल
(पिछली कड़ी से आगे)
आपके कृतित्व को विभिन्न चरणों में बांटा जा सकता है,
या नहीं?
नेरुदा: इस बारे में मुझे खासी उलझन है‐
मुझे भिन्न चरणों का कोई अहसास नहीं है उन्हें आलोचक सोचते है‐
अगर मैं कुछ कह सकता हूं तो यह कि मेरी सार्थकता में एक अवयवी
गुण रहा है - जब मैं बच्चा था तो बाल-सुलभ थी, जवान था तो कैशोर्य से भरी थी,
जब दुख में रहा तो उदास थी, सामाजिक संघर्ष में शरीक होना पड़ा तो युयुत्सु हुई‐
मेरी मौजूदा कविता में इन प्रवृतियों की मिली-जुली छाया है‐
मैंने हमेशा अपनी आंतरिक ज़्ारूरत से लिया है और मेरा ख्याल
है कि हर लेखक के साथ ऐसा होता है‐ कवियों के साथ खास तौर पर‐
मैंने आपको कार में भी लिखते देखा है‐
नेरुदा: मैं जहां और जब भी लिख सकूं लिख देता हूं‐
पर लिखता हूँ‐
क्या आप हर चीज हाथ से लिखते हैं?
नेरुदा: एक दुर्घटना में जब मेरी एक अंगुली टूटी और कुछ महीने
तक मैं टाइपराइटर पर नहीं लिख सका, तब से मैंने अपनी युवावस्था का तरीका अपनाया और हाथ से लिखना
शुरू किया‐ अंगुली ठीक होने के बाद फिर से टाइप करने पर मुझे लगा कि जो कविताएं मैंने हाथ
से लिखी थीं वे ज़्यादा संवेदनशील बन पड़ी थी‐ उनके लचीले फॉर्म अधिक आसानी से बदले जा सकते थे‐ रॉबर्ट ग्रेव्स ने किसी इंटरव्यू में कहा है कि चिंतन करने
के लिए आदमी को अपने इर्द-गिर्द ऐसी चीजें कम से कम रखनी चाहिए जो हाथ से बनी न हो‐
वह इतना और जोड़ देते कि कविता हाथ से ही लिखनी चाहिए ‐
टाइपराइटर ने मुझे कविता के साथ एक अधिक गहरी आत्मीयता से काट
दिया‐
हाथ से लिखने पर जैसे वह आत्मीयता लौट आयी‐
आपका लिखने का क्या समय है?
नेरुदा: कोई नियत समय नहीं है,
लेकिन मैं सुबह लिखना ज़्यादा पसन्द करता हूँ‐
यानी कि आप अगर यहां मेरा समय और अपना भी ख़राब न कर रही होतीं
तो मैं लिख रहा होता‐ दिन में मैं ज़्यादा नहीं पढ़ता‐
बल्कि मैं दिन-भर लिख सकता हूं,
लेकिन अक्सर किसी विचार, किसी अभिव्यक्ति या भीतर से बहुत उत्तेजना के साथ आयी हुई किसी
बात की पूर्णता - आप उसे ‘प्रेरणा’ जैसी पुरानी संज्ञा दे सकते हैं - मुझे पूरी तरह संतुष्ट कर
जाती है या निचोड़कर रख देती है या शांत या खाली कर जाती है‐
मतलब यह कि मैं ज़्यादा नहीं चला पाता‐
इसके अलावा, दिन-भर लगातार मेज पर झुके रहना मुझे है-उस लेखक को,
जिसके साथ पचास साल का सृजन है‐
वे कहते रहते हैं: ‘देखो, वह कैसे रहता है! समुद्र की तरफ खुलता हुआ मकान है और पीने के
लिए बढि़या शराब है‐’ अव्वल तो चीले में कोई घटिया शराब पी ही नहीं सकता,
क्योंकि यहां की लगभग सारी शराबें अच्छी होती हैं‐
यह एक ऐसा मसला है जो एक तरह से उजागर करता है कि हमारा देश
अल्प विकसित है - कुल मिलाकर यह कि हमारे तरीके कितने सतही हैं‐
आप ही ने मुझे बताया है कि संयुक्त राज्य अमरीका की एक पत्रिका नॉर्मन मेलर को तीन लेखों के साथ नब्बे हजार डॉलर दिये‐
यहां किसी लातिन अमरीकी लेखक को अपनी रचना पर अगर इतना पारिश्रमिक
मिल जाये तो इस पर प्रसन्न होने की बजाय कि किसी लेखक को इतना पैसा भी मिल सकता है,
दूसरे लेखकों में विरोध की लहर फैल जायेगी: ‘कितनी घृणित है! कितना भयंकर! यह कहां तो जायेगा?’
खैर, जैसा कि मैंने कहा, ये ऐसे दुर्भाग्य हैं जो सांस्कृतिक पिछड़ेपन के नाम पर चलते
रहते हूँ‐
क्या यह आरोप इसलिए ज़्यादा वजनदार नहीं है कि आप कम्युनिस्ट
पार्टी में हैं?
नेरुदा: बिल्कुल‐ अनेक बार कहा गया है कि जिसके पास कुछ नहीं है,
उसके पास खोने को सिवाय जंजीरों के कुछ नहीं होता‐
मेरा जीवन, मेरा व्यक्तित्व और मेरे पास जो कुछ है वह हर क्षण दांव पर लगा
रहता है-मेरी किताबें, मेरा घर‐ मेरा घर जलाया गया, मुझ पर अभियोग लगाये गये मुझे एक नहीं कई बार हिरासत में रखा
गया हजारों पुलिस वालों को मेरी तलाश रही‐ ठीक है फिर‐ मेरे पास जो कुछ है उसमें मुझे कोई आराम नहीं ह‐
सो, जो कुछ मेरे पास है, उसे मैंने जनता को, उसके संघर्ष को सौंप दिया और यह मकान भी,
जिसमें आप बैठी हुई हैं, मैंने बीस वर्ष पहले एक सार्वजनिक परवाने के ज़रिये पार्टी
को दे दिया था‐ बीस साल तक वह पार्टी की सम्पत्ति रहा‐ मैं तो अपनी पार्टी की सदस्यता के चलते यहां रह रहा हूँ‐
ठीक है, मेरी भत्र्सना करने वाले भी ऐसा कर दिखायें: और कुछ नहीं तो ज़रा अपने जूते ही कहीं छोड़ दें ताकि वे किसी दूसरे को दिये जा सकें‐
आपने अनेक पुस्तक-भंडार दान किये है‐
क्या यह सच है कि इन दिनो आप ईस्ला नेग्रा में एक लेखक-बस्ती
बसाने की योजना में लगे हैं?
नेरुदा: मैंने अपने देश के विश्वविद्यालय को एक से अधिक पुस्तक-भंडार
भेंट किये है‐ मैं अपनी पुस्तकों से होने वाली आय पर गुजर करता हूं ‐
मेरे पास किसी किस्म की बचत नहीं है‐
हर महीने किताबों से मिलने वाले धन के अलावा और मेरे पास खर्चने
के लिए भी कुछ नहीं होता‐ बहुत बाद में उस आय से मैंने समुद्र तट पर जमीन का एक बड़ा-सा
टुकड़ा हासिल किया, ताकि भविष्य में लेखक वहां गर्मियां बिता सकें और असाधारण सौंदर्य
के उस वातावरण में अपना रचनात्मक कार्य कर सकें ‐ इसका नाम कांतालास फाउंडेशन होगा और उसके निदेशकों में कैथलिक
विश्वविद्यालय, चीले विश्वविद्यालय और सोसायटी ऑफ़ रायटर्स के लोग होंगे‐
(जारी)
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