ढूँढ़ रहा है मोजे धरती के सीने में
- लाल्टू
ढूँढ़
रहा है मोजे धरती के सीने में
किसने छिपाए होंगे उसके मोजे
गहरे गड्ढों में
वह आदमी
ढूँढ़ रहा है कविता जंगल जंगल
कौन है जो उसके छंद चुराए
छिपा हुआ जंगलों में
वह आदमी कितना अजीब है
जिसे यह नहीं पता कि मोजे और अल्फाज़
आदमी के बदन पर रेंगते हैं
आदमी है कि भटकता
बाहर ढूँढ़ता गली गली
जब जंगल होते हैं उसके इर्द गिर्द
और धरती का सीना खुला होता है
उसको बेतहाशा प्यार देने के लिए
किसने छिपाए होंगे उसके मोजे
गहरे गड्ढों में
वह आदमी
ढूँढ़ रहा है कविता जंगल जंगल
कौन है जो उसके छंद चुराए
छिपा हुआ जंगलों में
वह आदमी कितना अजीब है
जिसे यह नहीं पता कि मोजे और अल्फाज़
आदमी के बदन पर रेंगते हैं
आदमी है कि भटकता
बाहर ढूँढ़ता गली गली
जब जंगल होते हैं उसके इर्द गिर्द
और धरती का सीना खुला होता है
उसको बेतहाशा प्यार देने के लिए
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