Friday, January 18, 2013

मैंने ख़ुद को जमा लिया है उन पेड़ों में जो कभी नहीं मरते



झाड़ू लगाने की शुरुआत

मत कहना : तुम पगला गए हो.”
तुम्हारे सपने हैं मेरा पागलपन
हम यहाँ आए हैं
और हमने खेतों को रंगा है
एक पल्लवित देह में.
हम कहा करते थे :
“काश हम आ पाते और ब्रह्माण्ड के साथ बलात्कार करते.”
अब हम आ पहुंचे हैं.

जो तुम्हें देख रहा है देखता मुझे भी है – मैं, वह आदिम गुलाब
शाम की राख में टूटा मैं,
भोर के साथ मेरी जड़ों से खुशबू निकलना शुरू हुई – मुलायम रोओं वाली मेरी पत्तियाँ
किसी सीढ़ी की तरह इकठ्ठा हुईं
क्या वह किसी के आने की आहट है?
या  धीमा पड़ती पदचापें?

जो तुम्हें देख रहा है देखता मुझे भी है – मैं, वह जो उद्घाटित करता है
रहस्यभरे विचारों को
और अपने आप को प्रस्तुत करता है गरजते तूफ़ान के आगे :
यह है रोशनी की एक छड़.
कुदरत की छवि को बदल दो
चट्टानों को मिलाओ पंखों के साथ, आनंद को त्रासदी के साथ.
धरती पर हर चीज़ नई है
मेरा चेहरा एक खुली जगह है,
और दूरी मेरी आँखों की शुरुआत.

जो तुम्हें देख रहा है देखता मुझे भी है
हम चिल्लाए :
“आग के रास्ते के अलावा कोई रास्ता नहीं है.
हम आ पहुंचे हैं.
क़ैदखाने बढ़ रहे हैं तादाद में अब भी;
बरौनियों के साथ फड़कते हैं निर्वासन;
बढ़ रह है भय, और जिन पर पड़ा है भय का दौरा
वे पत्तियाँ हैं.
क़ैदखाने बढ़ रहे हैं तादाद में
और वे गिर रहे हैं कविता के ऊपर लबादों में, कोनों में,
अपने धर्मसम्मत कानूनों का आह्वान करते हुए,
और टहलते हुए
मनकों के एक विस्तार में.

और मैं हूँ वह जो तहसनहस कर देता है सारे नियमों को,
मैं, वह आदिम गर्भ.

और वे कहते हैं : “यह  अन्धकार है.”
और वे कहते हैं : “यह अनुपस्थितियों का संसार है.”

अरी राजसी वासना,
ले जा मेरे शब्दों को अनुपस्थितियों के अपने संसार में.
ले जा मेरे कदमों को अनुपस्थितियों के अपने संसार में.
और ताले में बंद कर दे और ले जा मुझे
अरी राजसी वासना.

अगर तुम्हें विश्वविद्यालय के मुख्यद्वार पर
दिखाई दे एक तारा, उसका हाथ पकड़ के ले जाना अपने साथ.
अगर तुम्हें विश्वविद्यालय के मुख्यद्वार पर
दिखाई दे एक नक्षत्र, उसे गले लगाना ...
उसने विश्वविद्यालय के मुख्यद्वार पर लिखा :
चूर चूर हो रहा है इतिहास.
आग सब कुछ उजाड़ रही है.
लपटें हैं हमारे कदम
धरती की मृत देह को भेदते हुए.
हम जड़ से उखाड़ देते हैं परिवार को
दोस्तियाँ बनाने के लिए.
गाओ.
गाओ उन टूटी हड्डियों के लिए जो इस समय को ढंकती हैं घावों से,
क्योंकि यह समय है चूर चूर हो जाने का
गाओ.

सारा कुछ निगल जाने वाली त्रासदी के लिए गाओ.
जंजीरों में जकड़ी देह के लिए जगह बनाओ
ताकि दावत दी जा सके कुदरत को,
जगह बनाओ इस के गीतों के लिए.
तुम चहलकदमी करते हुए आए हो, अरब सागर
के रक्त में डूबे हुए
तुम आए हो बिजली की कड़क से भी ज्यादा
आकर्षक.

मत कहो : “तुम पगला गए हो.”
तुम्हारे सपने हैं मेरा पागलपन
हम यहाँ आए हैं,
हम उतरे हैं अँधेरे में, तोड़ दीं हैं इसकी लालटेनें, और हम आए हैं
ऐसी धरती की तरह जो तड़प रही है बारिश के लिए
हम आए हैं
जैसे बादलों के कपड़े पहने तूफ़ान
एक वायदा :
भोर होओगे तुम
और समय होगा हमारे सपनों के लिए छज्जे ...

धरती पर सब कुछ नया है; लपट है वर्णमाला,
और पागलपन है इस के और मेरे दरम्यान एक जलयात्रा
एक क्षितिज
अदृश्य सरहदों को लिखता हुआ.
और एक है हमारा नाम –

मैंने ख़ुद को जमा लिया है उन पेड़ों में जो कभी नहीं मरते.
मैं देख चुका क़दमों को, देख चुका घरों को
चूर चूर होते, चूर चूर होते
ये मेरी चिंगारियां हैं.

गर्भवान है दूरी.
एक है हमारा नाम – और हम झाड़ू लगा रहे हैं.
यह हमारा विस्तार है :
नक्षत्रों के रास्ते तहसनहस करने को, कुछ नहीं
बस यह पागलपन बन जाने को
पागलपन
पागलपन.

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