१३ अप्रैल १९५७ को गुना, मध्य प्रदेश में जन्मे श्री कुमार अम्बुज आज के सबसे
महत्वपूर्ण हिन्दी कवियों में शुमार होते हैं. लगातार रचनारत इस कवि के चार संग्रह
अब तक छपे हैं - किवाड़ (1992), क्रूरता (1996), अनंतिम (1998) एवं अतिक्रमण (2002).
उन्हें मिले सम्मानों में 1988 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार (1996),
श्रीकांत वर्मा सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान,
केदार सम्मान और वागीश्वरी पुरस्कार शामिल हैं.
कबाड़खाने में कुमार जी की कई सारी कवितायेँ आपको पढ़ने को
मिली हैं. आज से उन्हें और पढ़िए आने वाले कुछेक दिनों तक हर रोज़.
एक स्त्री पर कीजिए विश्वास
-कुमार अम्बुज
जब ढह रही हों आस्थाएँ
जब भटक रहे हों रास्ता
तो इस संसार में एक स्त्री पर कीजिए विश्वास
वह बताएगी सबसे छिपाकर रखा गया अनुभव
अपने अँधेरों में से निकालकर देगी वही एक कंदील
कितने निर्वासित, कितने शरणार्थी,
कितने टूटे हुए दुखों से, कितने गर्वीले
कितने पक्षी, कितने शिकारी
सब करते रहे हैं एक स्त्री की गोद पर भरोसा
जो पराजित हुए उन्हें एक स्त्री के स्पर्श ने ही बना दिया विजेता
जो कहते हैं कि छले गए हम स्त्रियों से
वे छले गए हैं अपनी ही कामनाओं से
अभी सब कुछ गुजर नहीं गया है
यह जो अमृत है यह जो अथाह है
यह जो अलभ्य दिखता है
उसे पा सकने के लिए एक स्त्री की उपस्थिति
उसकी हँसी, उसकी गंध
और उसके उफान पर कीजिए विश्वास
वह सबसे नयी कोंपल है
और वही धूल चट्टानों के बीच दबी हुए एक जीवाश्म की परछाईं
जब भटक रहे हों रास्ता
तो इस संसार में एक स्त्री पर कीजिए विश्वास
वह बताएगी सबसे छिपाकर रखा गया अनुभव
अपने अँधेरों में से निकालकर देगी वही एक कंदील
कितने निर्वासित, कितने शरणार्थी,
कितने टूटे हुए दुखों से, कितने गर्वीले
कितने पक्षी, कितने शिकारी
सब करते रहे हैं एक स्त्री की गोद पर भरोसा
जो पराजित हुए उन्हें एक स्त्री के स्पर्श ने ही बना दिया विजेता
जो कहते हैं कि छले गए हम स्त्रियों से
वे छले गए हैं अपनी ही कामनाओं से
अभी सब कुछ गुजर नहीं गया है
यह जो अमृत है यह जो अथाह है
यह जो अलभ्य दिखता है
उसे पा सकने के लिए एक स्त्री की उपस्थिति
उसकी हँसी, उसकी गंध
और उसके उफान पर कीजिए विश्वास
वह सबसे नयी कोंपल है
और वही धूल चट्टानों के बीच दबी हुए एक जीवाश्म की परछाईं
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