Tuesday, February 12, 2013

आज खुरों ने कंकड़-पत्थरों से मिल कर पहला कोरस गाया है



जंगल में एक बछड़े का पहला दिन

-हरीश चन्द्र पांडे 


आज जंगल देखने का पहला दिन है
गले में घण्टी घनघना रही है

आज चरना कम..देखना ज्यादा है
जहाँ हरापन गझिन है लपक नहीं जाना है वहीं
वहाँ मुड़ने की जगह भी है....देखना है

आज झाड़ियों से उलझ-उलझ पैने हुए हैं उपराते सींग
आज एक छिदा पत्ता चला आया है घर तक
आज खुरों ने कंकड़-पत्थरों से मिल कर पहला कोरस गाया है

आज देखी है दुनिया
आज उछल-उछल डौंरिया कर पैर हवा में तैरे हैं
और पूँछ का गुच्छ आकाश तक उठा है

आज रात...नदी की कल-कल नहीं सुनाई देगी

3 comments:

Rajendra kumar said...

किसी भी कार्य का पहला दिन रोचक ही होता है,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

Hi.. I am Kaivi.. said...

beautiful...

पारुल "पुखराज" said...

shaandaar kavita hai ye..