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जब मैं कहता हूँ बंदरगाह
मुझे क्यों याद आते हैं मस्तूल
और पाल जब मैं कहता हूँ ऊंची लहरें?
मुझे बिल्लियाँ क्यों याद आती है जब मैं कहता हूँ मार्च
और अधिकार जब कहता हूँ कामगार?
बूढ़ा घटवार*
क्यों कर लेता है ईश्वर पर विश्वास
बिना एक भी बार सोचे?
और हवादार दिनों में
क्यों आती है बारिश तिरछी होकर?
1 comment:
हम हर शब्द को अपने ही रचे गए एक बिम्ब से याद करते हैं . एक ध्वनि से , एक गंध से , एक स्पर्ष से , एक विचार से -- और कभी कभी एक चेतना से भी
किंतु काश चीज़ें हक़ीक़तन इन में से कोई एक भी हो पातीं ! . .... यही सृजन का विस्मय है !!
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