Thursday, March 7, 2013

बिना आवाज़ किए चीखती देहें



देहें

-अन्ना कामीएन्स्का

प्रेतों की तरह अदृश्य होती हैं देहें
नजर आना बंद कर देती हैं
उन्हें छू नहीं सकते, वे अनुपस्थित
बाथटबों में पाई जातीं
ग़श खातीं सड़कों पर
झूलती हुईं स्ट्रेचरों पर
हाथों में एक फोटोग्राफ के साथ विदा लेती हुईं
एक घड़ी सगाई की एक अंगूठी एक छतरी से मुक्त होती हुईं
सुहागरात के दिन जैसी सुन्दर
विवस्त्र
इस दफा वास्तव में वफादार
खामोशी कीं दोस्त
यानी उन चीज़ों की जो ख़ुद
एक सपने के बगल वाले दरवाज़े से
वापस लौट रही हैं
अचानक हर जगह मौजूद
बिना आवाज़ किए चीखती हुईं
सांत्वना के परे किसी भी लालसा में