१३ अप्रैल १९१४ को इस्तांबूल के बेकोज़ इलाके जन्मे तुर्की
कवि ओरहान वेली ने ओक्तेय रिफात और मेलिह सेवदेत के साथ कविता के गरीब आंदोलन
की स्थापना की थी.
ओरहान वेली के पिता प्रेसीडेंशियल सिम्फनी ओर्केस्ट्रा के संचालक
थे जबकि छोटा भाई अदनान वेली पत्रकारिता के क्षेत्र में जाना माना नाम था. १९५२ में
छपी अदनान की जेल डायरी ‘द प्रिज़न फ़ाउन्टेन’ खासी चर्चित रही. ओरहान वेली ने स्कूली
शिक्षा अंकारा गाज़ी हाईस्कूल से ग्रहण की. उसके बाद वे इस्तांबूल विश्वविद्यालय में
दर्शनशास्त्र का अध्ययन करने गए लेकिन १९३५ में उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी.
१९४५ से १९४७ तक शिक्षा मंत्रालय ने उन्हें बतौर अनुवादक नौकरी
पर रखा. बाद में उन्होंने फ्रीलांस पत्रकार और अनुवादक की हैसियत से काम जारी रखा.
१९४९ में उन्होंने ‘याप्राक’ नाम की एक साहित्यिक पत्रिका के प्रकाशन में सहायता की.
कुल छत्तीस साल की आयु में ब्रेन हैमरेज से उनका देहांत हुआ जब अत्यधिक नशे की हालत
में वे एक गड्ढे में गिरे पाए गए थे.
गरीब आंदोलन समूह को तुर्की का पहला नया आंदोलन भी कहा गया. हाईस्कूल के समय से ही दोस्त रहे
इन तीनों ने तत्कालीन तुर्की कविता और साहित्य की पारम्परिक और ह्रासोन्मुख शैली को
त्याग कर साधारण जन की भाषा को अपना माध्यम बनाया. इसके अलावा उस समय लोकप्रियता हासिल
कर रहे सर्रियलिस्ट तत्वों को भी उन्होंने अपनी कविता में समाहित किया.
ओरहान वेली को एक ऐसी कविता का पक्षधर माना जाता है जिसमें शैलीगत तत्वों और विशेषणों
की अति न हो और जो शैली में मुक्त छंद के नज़दीक हो. उनका अद्वितीय स्वर और उनकी कविता
के तल में अवस्थित संवेदनाओं की गहराई उन्हें तुर्की जनता और अकादमिक दायरों का लाड़ला
कवि बनाए हुए है..
आज से उनकी कविताओं की सीरीज़
आज़ादी की ओर
भोर से पहले
जब समुद्र तब भी होगा बर्फ़ीला-सफ़ेद, तुम अपनी यात्रा पर निकल
पड़ोगे;
पतवारों की जकड़ तुम्हारी हथेलियों पर,
और दिल में तुम्हारे मशक्कत और जोश,
तुम निकल पड़ोगे.
जालों के लुढ़कने और डोलने के बीच निकल पड़ोगे तुम.
तुम्हारे रास्ते में, तुम्हारा स्वागत करने हाज़िर होंगीं मछलियाँ
तुम्हें आह्लाद से भरती हुईं.
जब तुम अपने जालों को झकझोरोगे
परत-दर-परत समुद्र यात्रा करता आएगा तुम्हारे हाथों में.
जब खामोशी चली आएगी समुद्री पक्षियों की आत्माओं में,
चट्टानों की कब्रगाह में,
अकस्मात
क्षितिज पर मचेगी अफरातफरी :
दौड़ती आएंगीं जलपरियाँ और चिड़ियाँ ...
जश्न और उत्सव, सामूहिक रति और त्यौहार,
बारातें, स्वांग करने वाली मंडलियां, ऐश, इशरत ...
वाह वा!
अब किस का इंतज़ार कर हो यार, कूद जाओ समुद्र में!
भूल जाओ पीछे कौन तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है.
तुम्हं दीखता नहीं : आज़ादी तुहारे चरों तरफ़ है.
खुद ही बन जाओ पाल, पतवार, मछली, पानी
और जाओ, जहां तक जा सकते हो जाओ.
1 comment:
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज के ब्लॉग बुलेटिन पर |
Post a Comment