ओरहान वेली की इस कविता को अनुवाद करते हुए मुझे उन्हीं के देश के महाकवि
नाजिम हिकमत की जीने के बारे में लिखीं कविताओं की श्रृंखला की बारहां याद आती
रही. नाजिम की कविताओं के शानदार अनुवाद हमारे वरिष्ठतम कबाड़ी वीरेन डंगवाल ने किये
थे.
जीना
-ओरहान वेली
१.
मैं जानता हूँ आसान काम नहीं है जीना
या मोहब्बत करना और अपनी महबूबा के बारे में गीत गाना
रात को तारों के नीचे टहलना
दिन के वक्त खुद को धूप में तपाना
थोड़ी फुर्सत के लिए आधा दिन निकालकर
इस्तांबूल की सबसे सुन्दर पहाड़ी की छोटी पर चले जाना
-बास्फोरस में बहती जाती हैं नीले की असंख्य रंगतें.
और विस्मृत कर देना सारा कुछ नीले हुजूम के सामने.
२.
मैं जानता हूँ आसान काम नहीं है जीना
लेकिन देखो
मृतक का बिस्तर अब भी गर्म है,
अब भी चल रही है मृतक की कलाईघड़ी.
जीना इतना आसान मसला नहीं है भाई,
अलबत्ता आसान तो मरना भी नहीं.
दुनिया को छोड़कर जाना तो कत्तई नहीं.
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