Tuesday, April 2, 2013

मैं दौड़ती हूँ तुम्हारे जीवन के साउंडट्रैक पर


७ जून १९४३ को नौक्स्विल, टेनेसी में जन्मी निक्की जियोवानी का वास्तविक नाम योलांडे कौर्नेलिया जियोवानी था. उनकी परवरिश अलबत्ता सिनसिनाटी ओहायो में हुई. उन्होंने ऑल ब्लैक फिस्क यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की जहां वे राइटर्स वर्कशॉप और स्टूडेंट्स नॉन वायलेंट कोओरडीनेटिंग कमेटी से जुड गईं. साहित्य और राजनैतिक प्रतिबद्धता से उनका सम्बन्ध अगले कई दशकों तक बना रहा.

१९६७ में वे अश्वेत कला आन्दोलन से संबद्ध हुईं – अफ्रीकी अमरीकी बुद्धिजीवियों के इस संगठन के सदस्य अश्वेत अधिकारों और समानता को लक्ष्य बनाकर राजनैतिक और कलात्मक दृष्टि से रेडिकल किस्म की कविताएँ लिखा करते थे. मैल्कम एक्स की हत्या और अश्वेत पैंथर मिलिशिया के उद्भव के बाद निक्की की कविता १९६० और १९७० के दशकों में एक तत्कालिक क्रांतिकारिता और अश्वेत चेतना का प्रतिनिधित्व करने लगी. उनके संग्रह ‘ब्लैक फीलिंग, ब्लैक टॉक’ (१९६८), ‘ब्लैक जजमेंट’ (१९६८) और ‘री : क्रियेशन’ (१९७०) इस तथ्य को रेखांकित करते हैं.

अकेली माता के बतौर हुए उनके अनुभव उनकी आगामी कविता के विषय बनना शुरू हुए. ‘स्पिन अ सॉफ्ट ब्लैक सॉंग’ (१९७१), ‘ईगो ट्रिपिंग’ (१९७३) और ‘वैकेशन टाइम’ (१९८०) में बच्चों के लिए लिखी गयी कविताएँ संग्रहीत हैं. अकेलापन, पराजित स्वप्न और पारिवारिक अंतरंगता उनकी १९७० की कविताओं का प्रमुख हिस्सा हैं. १९८३ में ‘दोज हूँ राइड द नाईट विंड्स’ (१९८३) में पुनः अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धताओं के साथ सामने आईं - यह संग्रह अश्वेत नायक-नायिकाओं को समर्पित था. १९६० के दशक से ही जियोवानी अपने कवितापाठ के लिए बेहद मशहूर रहीं. वे बेहतरीन वक्ता के तौर पर भी जानी जाती रहीं.

१९७१ में छपी किताब ‘जेमिनाई’ में उनके संस्मरण दर्ज़ हैं जबकि ‘सैक्रेड काऊ एण्ड अदर एडीबल्स’ में उनके निबन्धों का संग्रह है. निक्की वर्जीनिया टेक में अंग्रेज़ी की प्रोफ़ेसर रहीं. हालिया वर्षों में उनके फेफड़े के कैंसर का सफल ऑपरेशन हुआ है.

निक्की जियोवानी की कुछेक कविताएँ आप इस ब्लॉग पर पहले भी पढ़ चुके हैं. आज उनकी प्रेम कविताओं के संग्रह 'बाइसिकल' से दो रचनाएँ -


सादे शब्दों में

मैं खुद से बातें करती रहती हूँ.

लोग समझते हैं मैं फोन पर हूँ
साधारण दिनों में लोगों को यह अजीब लगता
वे मुझ पर दया करते
और समझते मैं सनक गयी हूँ.
बांसी कागज की थैलियाँ लिए
मैं चल रही होती सड़क पर
बहस करती हुई ... कभी गुनगुनाती
कोई धुन.

मैं अकेली हूँ
अपनी रसोई की सिंक के आगे
या गाड़ी में
स्टीयरिंग के पीछे
तंदूर से बाहर निकलती भुना गोश्त और सब्जियां
आप कितनी आसानी से देख सकते हैं
मैं अपने
इस जीवन का लुत्फ़ उठा रही हूँ.

मैं हमेशा मुस्कराती रहती हूँ.

प्यार हुआ है मुझे.

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मैं जैज़ हूँ

मैं जैज़ हूँ
मुलायम हूँ पर पॉप नहीं हूँ
शांत हूँ पर बंधी हुई नहीं
मैं दौड़ती हूँ
तुम्हारे जीवन के साउंडट्रैक पर

तुम कर्कशता के साथ मुझ में उतरते हो
और मांग करते हो थोड़े से बिस्तर की

हो सकता है
उस सब में एकाध प्रार्थनाएं भी होती हों

मैं जैज़ हूँ

जब तुम अकेले होते हो
मैं आती हूँ तुम तक
तुम्हें काम करने को लय
और ख़याल करने को कविता देती हुई

मैं विशुद्ध जैज़ से सहमत हूँ
तुम्हारा कुता मेरे साथ सुरक्षित
शांत हूँ बिल्लियों के लिए
तुम्हारी मछलियों के तालाब के वास्ते मैं नमक

तुम्हें ज़रूरत है मेरी
स्वीकार क्यों नहीं करते
तुम्हें ज़रूरत है मेरी.