अगर
-निक्की जियोवानी
अगर
मैं कभी न हुई होती तुम्हारी बांहों में
न
नाचा होता वह नृत्य
न
सूंघी होती तनिक पसीने वाली तुम्हारी महक
हो
सकता था मैं सो पाती रातों को
अगर
मैंने कभी न थामा होता तुम्हारा हाथ
कभी
न गयी होती उतने नज़दीक
ब्रह्माण्ड
के सबसे चुम्बनीय होंठों के
अगर
कभी न की होती ख्वाहिश
तुम्हारे
गालों के गढे में अपनी जीभ को टिका देने की
हो
सकता था मैं सो पाती रातों को
अगर
मुझे इस कदर जानने की इच्छा न होती
कि
तुम खर्राटे लेते हो या नहीं
और
सोते में तकिये से लिपटते हो या नहीं
जागने
पर क्या कहते हो
और
अगर मैं तुम्हें गुदगुदी करूं
तो
ठहाका मार कर हंसोगे या नहीं
अगर
यह जादू
यह
अचरज
यह
उत्कंठा
थम
पाते तो
अगर
जवाब दिया जा सकता
इस
सवाल का जो मुझे इस कदर बेचैन करता है
बस
अगर मैं बंद कर सकूं तुम्हारे सपने देखना
हो
सकता था मैं सो पाती रातों को
2 comments:
beautiful creation!
अच्छा चयन! यह जादू, यह अचरज, यह उत्कंठा....कहाँ थम पाते हैं चिरकाल से!
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