फफूँद
-किनफम सिंग नोंकिनरिह
(खासी कवि किनफम सिंग नोंकिनरिह का जन्म १९६४ में सोहरा में
हुआ था. उनके दो काव्य संग्रह अंग्रेज़ी में और तीन खासी में छप चुके हैं. फिलहाल
वे नेहू, शिलांग में प्रकाशन विभाग में कार्यरत हैं)
घर के भीतर जहां रहता हूँ
बहुत ठंड और अँधेरा है.
इतनी ठंड कि कभी पता भी नहीं चलता
दिन कितना गरम है,
इतना अँधेरा कि कभी पता नहीं चलता
बाहर कितना बजा.
खिड़की के बाहर आडू के रंग बदले
फिर उन्होंने चूनर ओढ़ी
सर्दियों के अंतिम संतरे भी
धूप में पक चले.
पर बाहर की दुनिया पर मेरा वश ही क्या!
मन तो सूरज की धूप देखने के लिए
सुरंग से रेंग कर बाहर निकला
पर फिसल कर फिर नीचे आया
बाहर पत्थर पड़ने का डर जो था.
इसी वजह से फफूँद की मानिंद
ठन्डे और अँधेरे घर में पड़ा रहा
जो भी कुछ मैं करता हूँ
फफूँद
ही दिखाई देता है.
3 comments:
बहुत ही बेहतरीन रचना,आभार.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (08 -04-2013) के चर्चा मंच 1208 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है | सूचनार्थ
बेहतरीन प्रस्तुति
पधारें "आँसुओं के मोती"
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