बाबा नज़ीर
अकबराबादी का कलाम और आवाज़ छाया गांगुली की –
ख़ूँरेज़ करिश्मा
नाज़ सितम, ग़मज़ों की झुकावट वैसी ही
पलकों की
झपक पुतली की फिरत, सुरमे की घुलावट वैसी ही
बेदर्द सितमगर
बेपरवाह, बेकल चंचल चटकीली सी
दिल सख़्त
क़यामत पत्थर सा, और बातें नर्म रसीली सी
चेहरे पर
हुस्न की गर्मी से, हर आन चमकते मोती से
ख़ुशरंग पसीने
की बूँदें, सौ बार झमकते मोती से
2 comments:
khoob!
बहुत खूब!
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