इस अड्डे
के आदिपुरुष, महाकबाड़ी जनाब वीरेन डंगवाल इन दिनों स्वास्थ्य की मामूली दिक्कतों
से जूझ रहे हैं. उनके जल्दी जल्दी ठीक होने की दुआ के साथ उनकी यह कविता –
अकेला तू तभी
तू तभी अकेला
है जो बात न ये समझे
हैं लोग करोड़ों
इसी देश में तुझ जैसे
धरती मिट्टी
का ढेर नहीं है अबे गधे
दाना पानी
देती है वह कल्याणी है
गुटरूं-गूं
कबूतरों की, नारियल का
जल
पहिये की
गति, कपास के हृदय का पानी है
तू यही सोचना
शुरू करे तो बात बने
पीड़ा की
कठिन अर्गला को तोड़ें कैसे!
2 comments:
सच है, यही सच है।
अच्छा है।
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