केदारनाथ अग्रवाल
की यह दो कविताएँ कई दिनों से लगातार जेहन में गूँज रही हैं.
और का और मेरा दिन
दिन है
किसी और का
सोना का हिरन,
मेरा है
भैंस की खाल का
मरा दिन.
यही कहता है
वृद्ध रामदहिन
यही कहती है
उसकी धरैतिन,
जब से
चल बसा
उनका लाड़ला.
किसी और का
सोना का हिरन,
मेरा है
भैंस की खाल का
मरा दिन.
यही कहता है
वृद्ध रामदहिन
यही कहती है
उसकी धरैतिन,
जब से
चल बसा
उनका लाड़ला.
मजदूर का जन्म
एक हथौड़ेवाला घर
में और हुआ !
हाथी सा बलवान,
हाथी सा बलवान,
जहाजी हाथों वालाऔर हुआ !
सूरज-सा इंसान,
तरेरी आँखोंवाला और हुआ !!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
माता रही विचारः
माता रही विचारः
अँधेरा हरनेवाला और हुआ !
दादा रहे निहारः
सबेरा करनेवाला और हुआ !!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !
जनता रही पुकारः
जनता रही पुकारः
सलामत लानेवाला और हुआ !
सुन ले री सरकार!
कयामत ढानेवाला और हुआ !!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !
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