Monday, June 24, 2013

बिल्डर लेकर आयेगा, अबके नई मशीन


दोहा विधा में सिद्धहस्त कवि नरेंद्र मौर्य की ताज़ा रचना (श्री असद ज़ैदी की फेसबुक वॉल से साभार) :

दुख में दोहे


-नरेंद्र मौर्य 

खेल ये कुदरत का नहीं, इंसानी करतूत
मोहना तेरे विकास का ये है असली रूप

पीटे ढोल विकास का, खोदे रोज़ पहाड़
क़ुदरत भी कितना सहे, तेरा ये खिलवाड़़

बड़ी मशीनें देखकर, रोये ख़ूब पहाड़
कैसे झेलेगा भला जब आयेगी बाढ़

खनन माफ़िया से हुआ सत्ता का गठजोड़
पैसा ख़ूब कमायेंगे, धरती का दिल तोड़

खण्ड-खण्ड बहता रहा हाय उत्तराखण्ड
मलबा बन गई ज़िन्दगी, रुका नहीं पाखण्ड

आपदा राहत कोष से, होंगे कई अमीर
जनता बिन राहत मरे, वे खायेंगे खीर

धरम करम के चोचले, दान पुण्य भी ख़ूब
भक्त बचे कैसे भला, ख़ूद भगवन गये डूब

गाँव बहे और हो गयी, ख़ाली यहाँ ज़मीन
बिल्डर लेकर आयेगा, अबके नई मशीन

3 comments:

अफ़लातून said...

रचयिता नरेन्द्र मौर्य का नाम रचना के साथ दीजिए,सिर्फ लेबल में नहीं |

Ashok Pande said...

नाम दिया था ऊपर अफलातून जी! एक बार और लगा दिया है.

धन्यवाद!

आर. अनुराधा said...

"बिल्डर लेकर आयेगा, अबके नई मशीन"
इसके बाद भी कुछ कहने को रह जाता है?!