दो नाक वाले लोग
- हरिशंकर परसाई
मैं उन्हें समझा रहा था कि लड़की की शादी में टीमटाम में व्यर्थ
खर्च मत करो.
पर वे बुजुर्ग कह रहे थे - आप ठीक कहते हैं, मगर रिश्तेदारों में
नाक कट जाएगी.
नाक उनकी काफी लंबी थी. मेरा ख्याल है, नाक की हिफाजत सबसे
ज्यादा इसी देश में होती है. और या तो नाक बहुत नर्म होती है या छुरा बहुत तेज,
जिससे छोटी-सी बात से भी नाक कट जाती है. छोटे आदमी की नाक बहुत नाजुक
होती है. यह छोटा आदमी नाक को छिपाकर क्यों नहीं रखता?
कुछ बड़े आदमी, जिनकी हैसियत है, इस्पात की नाक लगवा लेते हैं और चमड़े का रंग चढ़वा लेते हैं. कालाबाजार में
जेल हो आए हैं औरत खुलेआम दूसरे के साथ 'बाक्स' में सिनेमा देखती है, लड़की का सार्वजनिक गर्भपात हो
चुका है. लोग उस्तरा लिए नाक काटने को घूम रहे हैं. मगर काटें कैसे? नाक तो स्टील की है. चेहरे पर पहले जैसी ही फिट है और शोभा बढ़ा रही है.
स्मगलिंग में पकड़े गए हैं. हथकड़ी पड़ी है. बाजार में से ले
जाए जा रहे हैं. लोग नाक काटने को उत्सुक हैं. पर वे नाक को तिजोड़ी मे रखकर स्मगलिंग
करने गए थे. पुलिस को खिला-पिलाकर बरी होकर लौटेंगे और फिर नाक पहन लेंगे.
जो बहुत होशियार हैं, वे नाक को तलवे में रखते हैं. तुम सारे
शरीर में ढूँढ़ो, नाक ही नहीं मिलती. नातिन की उम्र की दो लड़कियों
से बलात्कार कर चुके हैं. जालसाजी और बैंक को धोखा देने में पकड़े जा चुके हैं. लोग
नाक काटने को उतावले हैं, पर नाक मिलती ही नहीं. वह तो तलवे में
है. कोई जीवशास्त्री अगर नाक की तलाश भी कर दे तो तलवे की नाक काटने से क्या होता है?
नाक तो चेहरे पर की कटे, तो कुछ मतलब होता है.
और जो लोग नाक रखते ही नहीं हैं, उन्हें तो कोई डर ही
नहीं है. दो छेद हैं, जिनसे साँस ले लेते हैं.
कुछ नाकें गुलाब के पौधे की तरह होती हैं. कलम कर दो तो और अच्छी
शाखा बढ़ती है और फूल भी बढ़िया लगते हैं. मैंने ऐसी फूलवाली खुशबूदार नाकें बहुत देखीं
हैं. जब खुशबू कम होने लगती है, ये फिर कलम करा लेते हैं, जैसे किसी औरत को छेड़ दिया और जूते खा गए.
'जूते खा गए' अजब मुहावरा है. जूते तो मारे
जाते हैं. वे खाए कैसे जाते हैं? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है
कि जूते भी खा जाता है.
नाक और तरह से भी बढ़ती है. एक दिन एक सज्जन आए. बड़े दुखी थे.
कहने लगे - हमारी तो नाक कट गई. लड़की ने भागकर एक विजातीय से शादी कर ली. हम ब्राह्मण
और लड़का कलाल! नाक कट गई.
मैंने उन्हें समझाया कि कटी नहीं है, कलम हुई है. तीन-चार
महीनों में और लंबी बढ़ जाएगी.
तीन-चार महीने बाद वे मिले तो खुश थे. नाक भी पहले से लंबी हो
गई थी. मैंने कहा - नाक तो पहले से लंबी मालूम होती है.
वे बोले - हाँ, कुछ बढ़ गई है. काफी लोग कहते हैं,
आपने बड़ा क्रांतिकारी काम किया. कुछ बिरादरीवाले भी कहते हैं. इसलिए
नाक बढ़ गई है.
कुछ लोग मैंने देखे हैं जो कई साल अपने शहर की नाक रहे हैं.
उनकी नाक अगर कट जाए तो सारे शहर की नाक कट जाती है. अगर उन्हें संसद का टिकिट न मिले, तो सारा शहर नकटा हो
जाता है. पर अभी मैं एक शहर गया तो लोगों ने पूछा - फलाँ साहब के क्या हाल हैं?
वे इस शहर की नाक हैं. तभी एक मसखरे ने कहा - हाँ साहब, वे अभी भी शहर की नाक हैं, मगर छिनकी हुई. (यह वीभत्स
रस है. रस सिद्धांत प्रेमियों को अच्छा लगेगा.)
मगर बात मैं उन सज्जन की कर रहा था जो मेरे सामने बैठे थे और
लड़की की शादी पुराने ठाठ से ही करना चाहते थे. पहले वे रईस थे - याने मध्यम हैसियत
के रईस. अब गरीब थे. बिगड़ा रईस और बिगड़ा घोड़ा एक तरह के होते हैं - दोनों बौखला
जाते हैं. किससे उधार लेकर खा जाएँ, ठिकाना नहीं. उधर बिगड़ा घोड़ा किसे कुचल
दे, ठिकाना नहीं. आदमी को बिगड़े रईस और बिगड़े घोड़े,
दोनों से दूर रहना चाहिए. मैं भरसक कोशिश करता हूँ. मैं तो मस्ती से
डोलते आते साँड़ को देखकर भी सड़क के किनारे की इमारत के बरामदे में चढ़ जाता हूँ
- बड़े भाई साहब आ रहे हैं. इनका आदर करना चाहिए.
तो जो भूतपूर्व संपन्न बुजुर्ग मेरे सामने बैठे थे, वे प्रगतिशील थे. लड़की
का अंतरजातीय विवाह कर रहे थे. वे खत्री और लड़का शुद्ध कान्यकुब्ज. वे खुशी से शादी
कर रहे थे. पर उसमें विरोधाभास यह था कि शादी ठाठ से करना चाहते थे. बहुत लोग एक परंपरा
से छुटकारा पा लेते हैं, पर दूसरी से बँधे रहते हैं. रात को शराब
की पार्टी से किसी ईसाई दोस्त के घर आ रहे हैं, मगर रास्ते में
हनुमान का मंदिर दिख जाए तो थोड़ा तिलक भी सिंदूर का लगा लेंगे. मेरा एक घोर नास्तिक
मित्र था. हम घूमने निकलते तो रास्ते में मंदिर देखकर वे कह उठते - हरे राम! बाद में
पछताते भी थे.
तो मैं उन बुजुर्ग को समझा रहा था - आपके पास रुपए हैं नहीं.
आप कर्ज लेकर शादी का ठाठ बनाएँगे. पर कर्ज चुकाएँगे कहाँ से? जब आपने इतना नया कदम
उठाया है, कि अंतरजातीय विवाह कर रहे हैं, तो विवाह भी नए ढंग से कीजिए. लड़का कान्यकुब्ज का है. बिरादरी में शादी करता
तो कई हजार उसे मिलते. लड़के शादी के बाजार में मवेशी की तरह बिकते हैं. अच्छा मालवी
बैल और हरयाणा की भैंस ऊँची कीमत पर बिकती हैं. लड़का इतना त्याग तो लड़की के प्रेम
के लिए कर चुका. फिर भी वह कहता है - अदालत जाकर शादी कर लेते हैं. बाद में एक पार्टी
कर देंगे. आप आर्य-समाजी हैं. घंटे भर में रास्ते में आर्यसमाज मंदिर में वैदिक रीति
से शादी कर डालिए. फिर तीन-चार सौ रुपयों की एक पार्टी दे डालिए. लड़के को एक पैसा
भी नहीं चाहिए. लड़की के कपड़े वगैरह मिलाकर शादी हजार में हो जाएगी.
वे कहने लगे - बात आप ठीक कहते हैं. मगर रिश्तेदारों को तो बुलाना
ही पड़ेगा. फिर जब वे आएँगे तो इज्जत के ख्याल से सजावट, खाना, भेंट वगैरह देनी होगी.
मैंने कहा - आपका यहाँ तो कोई रिश्तेदार है नहीं. वे हैं कहाँ?
उन्होंने जवाब दिया - वे पंजाब में हैं. पटियाला में ही तीन
करीबी रिश्तेदार हैं. कुछ दिल्ली में हैं. आगरा में हैं.
मैंने कहा - जब पटियालावाले के पास आपका निमंत्रण-पत्र पहुँचेगा, तो पहले तो वह आपको
दस गालियाँ देगा - मई का यह मौसम, इतनी गर्मी. लोग तड़ातड़ लू
से मर रहे हैं. ऐसे में इतना खर्च लगाकर जबलपुर जाओ. कोई बीमार हो जाए तो और मुसीबत.
पटियाला या दिल्लीवाला आपका निमंत्रण पाकर खुश नहीं दुखी होगा. निमंत्रण-पत्र न मिला
तो वह खुश होगा और बाद में बात बनाएगा. कहेगा - आजकल जी, डाक
की इतनी गड़बड़ी हो गई है कि निमंत्रण पत्र ही नहीं मिला. वरना ऐसा हो सकता था कि हम
ना आते.
मैंने फिर कहा - मैं आपसे कहता हूँ कि दूर से रिश्तेदार का निमंत्रण
पत्र मुझे मिलता है, तो मैं घबरा उठता हूँ.
सोचता हूँ - जो ब्राह्मण ग्यारह रुपए में शनि को उतार दे, पच्चीस रुपयों में
सगोत्र विवाह करा दे, मंगली लड़की का मंगल पंद्रह रुपयों में
उठाकर शुक्र के दायरे में फेंक दे, वह लग्न सितंबर से लेकर मार्च
तक सीमित क्यों नहीं कर देता? मई और जून की भयंकर गर्मी की लग्नें
गोल क्यों नहीं कर देता? वह कर सकता है. और फिर ईसाई और मुसलमानों
में जब बिना लग्न शादी होती है, तो क्या वर-वधू मर जाते हैं.
आठ प्रकार के विवाहों में जो 'गंधर्व विवाह' है वह क्या है? वह यही शादी है जो आज होने लगा है,
कि लड़का-लड़की भागकर कहीं शादी कर लेते हैं. इधर लड़की का बाप गुस्से
में पुलिस में रिपोर्ट करता है कि अमुक लड़का हमारी 'नाबालिग'
लड़की को भगा ले गया है. मगर कुछ नहीं होता; क्योंकि
लड़की मैट्रिक का सर्टिफिकेट साथ ले जाती है जिसमें जन्म-तारीख होती है.
वे कहने लगे - नहीं जी, रिश्तेदारों में नाक कट जाएगी.
मैंने कहा - पटियाला से इतना किराया लगाकर नाक काटने इधर कोई
नहीं आएगा. फिर पटियाला में कटी नाक को कौन इधर देखेगा. काट लें पटियाला में.
वे थोड़ी देर गुमसुम बैठे रहे.
मैंने कहा - देखिए जी, आप चाहें तो मैं पुरोहित हो जाता हूँ
और घंटे भर में शादी करा देता हूँ.
वे चौंके. कहने लगे - आपको शादी कराने की विधि आती है?
मैंने कहा - हाँ, ब्राह्मण का बेटा हूँ. बुजुर्गों ने सोचा
होगा कि लड़का नालायक निकल जाए और किसी काम-धंधे के लायक न रहे, तो इसे कम से कम सत्यनारायण की कथा और विवाह विधि सिखा दो. ये मैं बचपन में
ही सीख गया था.
मैंने आगे कहा - और बात यह है कि आजकल कौन संस्कृत समझता है.
और पंडित क्या कह रहा है, इसे भी कौन सुनता है. वे तो 'अम'
और 'अह' इतना ही जानते हैं.
मैं इस तरह मंगल-श्लोक पढ़ दूँ तो भी कोई ध्यान नहीं देगा -ओम जेक एंड विल वेंट अप
दी हिल टु फेच ए पेल ऑफ वाटरम, ओम जेक फेल डाउन एंड ब्रोक हिज
क्राउन एंड जिल केम ट्रंबलिंग आफ्टर कुर्यात् सदा मंगलम्... इसे लोग वैदिक मंत्र समझेंगे.
वे हँसने लगे.
मैंने कहा - लड़का उत्तर प्रदेश का कान्यकुब्ज और आप पंजाब के
खत्री - एक दूसरे के रिश्तेदारों को कोई नहीं जानता. आप एक सलाह मेरी मानिए. इससे कम
में भी निपट जाएगा और नाक भी कटने से बच जाएगी. लड़के के पिता की मृत्यु हो चुकी है.
आप घंटे भर में शादी करवा दीजिए. फिर रिश्तेदारों को चिट्ठियाँ लिखिए - 'इधर लड़के के पिता को
दिल का तेज दौरा पड़ा. डाक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी. दो-तीन घंटे वे किसी तरह जी
सकते थे. उन्होंने इच्छा प्रकट की कि मृत्यु के पहले ही लड़के की शादी हो जाए तो मेरी
आत्मा को शांति मिल जाएगी. लिहाजा उनकी भावना को देखते हुए हमने फौरन शादी कर दी. लड़का-लड़की
वर-वधू के रूप में उनके सामने आए. उनसे चरणों पर सिर रखे. उन्होंने इतना ही कहा - सुखी
रहो. और उनके प्राण-पखेरू उड़ गए. आप माफ करेंगे कि इसी मजबूरी के कारण हम आपको शादी
में नहीं बुला सके. कौन जानता है आपके रिश्तेदारों में कि लड़के के पिता की मृत्यु
कब हुई?
उन्होंने सोचा. फिर बोले - तरकीब ठीक है! पर इस तरह की धोखाधड़ी
मुझे पसंद नहीं.
खैर मैं उन्हें काम का आदमी लगा नहीं.
दूसरे दिन मुझे बाहर जाना पड़ा. दो-तीन महीने बाद लौटा तो लोगों
ने बताया कि उन्होंने सामान और नकद लेकर शादी कर डाली.
तीन-चार दिन बाद से ही साहूकार सवेरे से तकादा करने आने लगे.
रोज उनकी नाक थोड़ी-थोड़ी कटने लगी.
मैंने पूछा - अब क्या हाल हैं?
लोग बोले - अब साहूकार आते हैं तो यह देखकर निराश लौट जाते हैं
कि काटने को नाक ही नहीं बची.
मैंने मजाक में कहा - साहूकारों से कह दो कि इनकी दूसरी नाक
पटियाला में पूरी रखी है. वहाँ जाकर काट लो.
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