Saturday, August 24, 2013

ऐसे पोर्ट्रेट बना सकूं जो एक सदी बाद रह रहे लोगों को प्रेतों जैसे नज़र आएं

विन्सेंट वान गॉग के बनाए पोर्ट्रेट

अपने लैंडस्केप्स के लिए जाने जाने वाले विन्सेंट वान गॉग की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा थी पोर्ट्रेट बनाने में दक्षता हासिल करना. अपनी पोर्ट्रेट स्टडीज़ के बारे में एक बार उसने कहा था – “किसी भी पेंटिंग में मुझसे सब से ज़्यादा मेरी अपनी आत्मा की गहराई उत्तेजित करती है और वही मुझे किसी भी और चीज़ से ज़्यादा अनंत को महसूस करने का आनंद दिया करती है.”

अपनी बहन को उसने एक चिठ्ठी में लिखा: “ मैं चाहूँगा कि मैं ऐसे पोर्ट्रेट बना सकूं जो एक सदी बाद रह रहे लोगों को प्रेतों जैसे नज़र आएं. मैं इस मक़सद को फोटोग्राफिक साम्य के ज़रिये नहीं पाना चाहता;मेरा मतलब है ऐसा करने के लिए मैं मानव द्वारा अर्जित ज्ञान और रंगों को लेकर अपने आधुनिक नज़रिए को बतौर संसाधन अपनी अभिव्यक्ति के लिए इस्तेमाल करना चाहता हूँ ताकि आदमी का चरित्र सघन होकर सामने आये.”

पोर्ट्रेट पेन्ट करने के बारे में विन्सेंट ने लिखा है: “मैं एक चित्र में वैसा कुछ दुलराने वाला कहना चाहता हूँ जैसे संगीत दुलराता है. मैं आदमी-औरतों को उस अमर तत्व के साथ पेन्ट करना चाहता हूँ जिसे देवताओं के सिरों के गिर्द दिखाए जाने वाले आभामंडल से सिम्बोलाइज़ किया जाता था ...”


देखिये इस महबूब चित्रकार के कुछ पोर्ट्रेट्स -



















































1 comment:

S K Verma said...

विन्सेंट वान गॉग (Vincent Willem van Gogh, मार्च 1853 से जुलाई 1890) को विन्सेंट वान गॉ या विन्सेंट वान होफ लिखा जाना शायद अधिक सही होता..उच्चारण की दृष्टि से. यथार्थ जीवन में ट्रेजेडी king रहा ये कलाकार सनकी परन्तु विलक्षण था. शायद उसके जीवन का अंत इस गीत के बोल के अनुसार हुआ हो:
खिज़ां के फूल पे आती नहीं, बहार कभी.
मेरे नसीब में ए दोस्त, तेरा प्यार नहीं.