Saturday, August 17, 2013
कोई सुणता नईं जेनूं मैं सुणावां, रातां दी मेरी नींद उड गयी
बाबा नुसरत को लगाए बहुत दिन हो गए थे. पेश है उनकी एक कम सुनी गयी रचना -
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