संगीत के आसपास कुछ कविताएं - ५
और क्या करूँ करीम
-शिवप्रसाद जोशी
उदासी और प्रार्थना में भीगा हुआ है
करीम नाम तेरो
अध्ययन में गाता हूँ
कहता हूँ सोचता हूँ
सोचता हूँ गाता हूँ
मुझे नहीं मालूम तपस्या क्या होती है
प्रार्थना
मैं बस गाए जा रहा हूँ
और क्या करूँ करीम
मुझसे कुछ होता नहीं
मेरे दिल में संदूकची है उदासी की
उसे ही खोलता हूँ और गाता हूँ
वे फूल हैं और उनकी पखुंड़ियाँ हैं और
उनमें रेखाएँ हैं
रंग है
मैं गाने में सब बताता हूँ
कि कैसे मियाँ की मल्हार
की प्रचंडता को तोड़ना है
बारीक बारीक
एक धागा खींच लाना है
और उसमें बांध के सुर का एक कंकड़
डाल देना है उस कुएँ में
वो अथाह उदासी का अँधेरा
अनगिनत घुमड़ घुमड़
को आख़िर मुझे ही
बाँधना है
फिर तो बरसेगा
जो भी होगा वहाँ
थक जाता हूँ इतनी तानें
कि कितना भीगूँ
छींटे ही पड़ते होंगे मन में
सहसा एक गाने को गाना होगा बार बार
इसलिए गाता हूँ
सारी रोशनियाँ आ गई हैं
एक उजाला मुझे दिखता है
मुझे इसका गुमान नहीं
वो कुछ देर का है मेरे लिए
बस उतनी देर मैं ठीक से गा लूँ
तेरा नाम करीम.
1 comment:
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
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