यो तिल तुझ मुख के काबे में मुझे अस्वद-ए-हजर दिसता
ज़नख़ दाँ में तिरे मुझ चाह-ए-ज़मज़म का असर दिसता
परीशाँ सामरी का दिल तिरी जुल्फ़-ए-तिलिस्मी में
जुमुर्रुद रंग यो तिल मुझ कूँ सहर-ए-बाख़तर दिसता
मिरा दिल चाँद हो, तेरी निगह ऐजाज़ की उँगली
कि जिसकी यक इशारत में मुझे शक्क़ुल-क़मर दिसता
नयन देवल में पुतली यो है या काबे में अस्वद है
हिरन का है यो नाफ़ा या कँवल भीतर भँवर दिसता
'वली' शीरीं ज़बानी की नहीं है चाशनी सब को
हलावत फ़हम को मेरा सुख़न शहद-ओ-शकर दिसता
ज़नख़ दाँ में तिरे मुझ चाह-ए-ज़मज़म का असर दिसता
परीशाँ सामरी का दिल तिरी जुल्फ़-ए-तिलिस्मी में
जुमुर्रुद रंग यो तिल मुझ कूँ सहर-ए-बाख़तर दिसता
मिरा दिल चाँद हो, तेरी निगह ऐजाज़ की उँगली
कि जिसकी यक इशारत में मुझे शक्क़ुल-क़मर दिसता
नयन देवल में पुतली यो है या काबे में अस्वद है
हिरन का है यो नाफ़ा या कँवल भीतर भँवर दिसता
'वली' शीरीं ज़बानी की नहीं है चाशनी सब को
हलावत फ़हम को मेरा सुख़न शहद-ओ-शकर दिसता
-‘वली’ दकनी
1 comment:
खूबसूरत रचना
जंगल की डेमोक्रेसी
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