तीस साल का इतिहास
– शरद जोशी
कांग्रेस को राज करते करते तीस साल बीत गए. कुछ कहते हैं, तीन सौ साल बीत गए. गलत है. सिर्फ तीस
साल बीते. इन तीस सालों में कभी देश आगे बढ़ा, कभी कांग्रेस आगे बढ़ी. कभी दोनों आगे बढ़
गए, कभी दोनों नहीं बढ़ पाए. फिर यों हुआ कि
देश आगे बढ़ गया और कांग्रेस पीछे रह गई. तीस सालों की यह यात्रा कांग्रेस की महायात्रा
है. वह खादी भंडार से आरम्भ हुई और सचिवालय पर समाप्त हो गई.
पूरे तीस साल तक कांग्रेस हमारे देश पर तम्बू की तरह तनी रही, गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही, बर्फ सी जमी रही. पूरे तीस साल तक कांग्रेस
ने देश में इतिहास बनाया, उसे सरकारी कर्मचारियों ने लिखा और विधानसभा के सदस्यों ने
पढ़ा. पोस्टरों, किताबों, सिनेमा की स्लाइडों, गरज यह है कि देश के जर्रे-जर्रे पर कांग्रेस
का नाम लिखा रहा. रेडियो, टीवी, डाक्यूमेंट्री, सरकारी बैठकों और सम्मेलनों में, गरज यह कि दसों दिशाओं में सिर्फ एक ही
गूँज थी और वह कांग्रेस की थी. कांग्रेस हमारी आदत बन गई. कभी न छूटने वाली बुरी आदत.
हम सब यहाँ वहाँ से, दिल-दिमाग और तोंद से कांग्रेसी होने लगे. इन तीस सालों में
हर भारतवासी के अंतर में कांग्रेस गेस्ट्रिक ट्रबल की तरह समां गई.
जैसे ही आजादी मिली कांग्रेस ने यह महसूस किया कि खादी का कपड़ा मोटा, भद्दा और खुरदुरा होता है और बदन बहुत
कोमल और नाजुक होता है. इसलिए कांग्रेस ने यह निर्णय लिया कि खादी को महीन किया जाए, रेशम किया जाए, टेरेलीन किया जाए. अंग्रेजों की जेल में
कांग्रेसी के साथ बहुत अत्याचार हुआ था. उन्हें पत्थर और सीमेंट की बेंचों पर सोने
को मिला था. आजादी के बाद अच्छी क्वालिटी की कपास का उत्पादन बढ़ाया गया, उसके गद्दे-तकिये भरे गए और कांग्रेसी
उस पर विराज कर, टिक कर
देश की समस्याओं पर चिंतन करने लगे. देश में समस्याएँ बहुत थीं, कांग्रेसी भी बहुत थे. समस्याएँ बढ़ रही
थीं, कांग्रेस भी बढ़ रही थी. एक दिन ऐसा आया
की समस्याएँ कांग्रेस हो गईं और कांग्रेस समस्या हो गई. दोनों बढ़ने लगे.
पूरे तीस साल तक देश ने यह समझने की कोशिश की कि कांग्रेस क्या है? खुद कांग्रेसी यह नहीं समझ पाया कि कांग्रेस
क्या है? लोगों
ने कांग्रेस को ब्रह्म की तरह नेति-नेति के तरीके से समझा. जो दाएं नहीं है वह कांग्रेस
है. जो बाएँ नहीं है वह कांग्रेस है. जो मध्य में भी नहीं है वह कांग्रेस है. जो मध्य
से बाएँ है वह कांग्रेस है. मनुष्य जितने रूपों में मिलता है, कांग्रेस उससे ज्यादा रूपों में मिलती
है. कांग्रेस सर्वत्र है. हर कुर्सी पर है. हर कुर्सी के पीछे है. हर कुर्सी के सामने
खड़ी है. हर सिद्धांत कांग्रेस का सिद्धांत है. इन सभी सिद्धांतों पर कांग्रेस तीस साल
तक अचल खड़ी हिलती रही.
तीस साल का इतिहास साक्षी है कांग्रेस ने हमेशा संतुलन की नीति को बनाए रखा. जो
कहा वो किया नहीं. जो किया वो बताया नहीं. जो बताया वह था नहीं. जो था वह गलत था. अहिंसा
की नीति पर विश्वास किया और उस नीति को संतुलित किया लाठी और गोली से. सत्य की नीति
पर चली, पर सच बोलने वाले से सदा नाराज रही. पेड़
लगाने का आन्दोलन चलाया और ठेके देकर जंगल के जंगल साफ़ कर दिए. राहत दी मगर टैक्स बढ़ा
दिए. शराब के ठेके दिए, दारु के कारखाने खुलवाए; पर नशाबंदी का समर्थन करती रही. हिंदी
की हिमायती रही अंग्रेजी को चालू रखा. योजना बनायी तो लागू नहीं होने दी. लागू की तो
रोक दिया. रोक दिया तो चालू नहीं की. समस्याएँ उठी तो कमीशन बैठे. रिपोर्ट आई तो पढ़ा
नहीं. कांग्रेस का इतिहास निरंतर संतुलन का इतिहास है. समाजवाद की समर्थक रही, पर पूंजीवाद को शिकायत का मौका नहीं दिया.
नारा दिया तो पूरा नहीं किया. प्राइवेट सेक्टर के खिलाफ पब्लिक सेक्टर को खड़ा किया, पब्लिक सेक्टर के खिलाफ प्राइवेट सेक्टर
को. दोनों के बीच खुद खड़ी हो गई. तीस साल तक खड़ी रही. एक को बढ़ने नहीं दिया. दूसरे
को घटने नहीं दिया. आत्मनिर्भरता पर जोर देते रहे, विदेशों से मदद मांगते रहे. ‘यूथ’ को बढ़ावा
दिया, बुढ्ढों को टिकट दिया. जो जीता वह मुख्यमंत्री
बना, जो हारा सो गवर्नर हो गया. जो केंद्र में
बेकार था उसे राज्य में भेजा, जो राज्य में बेकार था उसे उसे केंद्र में ले आए. जो दोनों
जगह बेकार थे उसे एम्बेसेडर बना दिया. वह देश का प्रतिनिधित्व करने लगा.
एकता पर जोर दिया आपस में लड़ाते रहे. जातिवाद का विरोध किया, मगर अपनेवालों का हमेशा ख्याल रखा. प्रार्थनाएं
सुनीं और भूल गए. आश्वासन दिए, पर निभाए नहीं. जिन्हें निभाया वे आश्वश्त नहीं हुए. मेहनत
पर जोर दिया, अभिनन्दन
करवाते रहे. जनता की सुनते रहे अफसर की मानते रहे. शांति की अपील की, भाषण देते रहे. खुद कुछ किया नहीं दुसरे
का होने नहीं दिया. संतुलन की इन्तहां यह हुई कि उत्तर में जोर था तब दक्षिण में कमजोर
थे. दक्षिण में जीते तो उत्तर में हार गए. तीस साल तक, पूरे-पूरे तीस साल तक, कांग्रेस एक सरकार नहीं, एक संतुलन का नाम था. संतुलन तम्बू की
तरह तनी रही, गुब्बारे
की तरह फैली रही, हवा की
तरह सनसनाती रही बर्फ सी जमी रही. पूरे तीस साल तक.
कांग्रेस अमर है. वह मर नहीं सकती. उसके दोष बने रहेंगे और गुण लौट-लौट कर आएँगे.
जब तक पक्षपात, निर्णयहीनता
ढीलापन, दोमुंहापन, पूर्वाग्रह, ढोंग, दिखावा, सस्ती आकांक्षा और लालच कायम है, इस देश से कांग्रेस को कोई समाप्त नहीं
कर सकता. कांग्रेस कायम रहेगी. दाएं, बाएँ, मध्य, मध्य के मध्य, गरज यह कि कहीं भी किसी भी रूप में आपको कांग्रेस नजर आएगी.
इस देश में जो भी होता है अंततः कांग्रेस होता है. जनता पार्टी भी अंततः कांग्रेस हो
जाएगी. जो कुछ होना है उसे आखिर में कांग्रेस होना है. तीस नहीं तीन सौ साल बीत जाएँगे, कांग्रेस इस देश का पीछा नहीं छोड़ने वाली.
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