Wednesday, September 4, 2013

दाता तेरी जोगन हूँ - नुसरत की एक क़व्वाली


उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान की यह क़व्वाली का एक कैसेट हुआ करता था मेरे पास. अब न वह बचा न उसे कारआमद बनाने वाला टू-इन-वन.

तीन चार दिनों से लगातार यह क़व्वाली मेरे जेहन में लगातार लगातार गूँज रही थी. आज सुबह पहला काम यह किया कि इसे इंटरनेट पर खोज-बीन कर डाउनलोड किया, दो दफ़ा चैन से सुना और आपके वास्ते पेश कर रहा हूँ.


आनंद लीजिये-


1 comment:

मुनीश ( munish ) said...

कैस्टों का वो ज़माना ...क्या याद दिला दिया । बाबा का ये अलबेला अंदाज़ ओह मरहबा ज़बरजंग झन्नाटे के बाद का सन्नाटा । शुक्रिया सुनवाने का । बहुत ही सुन्दर ।