पेड़
-लीलाधर जगूड़ी
नदियाँ कहीं भी नागरिक नहीं होतीं
और पानी से ज़्यादा कठोर और काटनेवाला
कोई दूसरा औज़ार नहीं होता
फिर भी जो इस भयंकर बाढ़ में अपनी बगलों तक डूब कर खड़ा रहा
वह अतीत के जबड़े से छीन कर अपने टूटे हाथों को फिर से उगा रहा है
इस सपाट जगह के बाद उस कोने पर
जहाँ ढाल करीब-करीब बाईं ओर के अँधेरे में पड़ गया है
मुझे कुर्सी से उठ कर उससे मिलना चाहिए
अब पड़ोसियों के कार्यक्रम से समय का पता लगना मुश्किल हो गया है
क्योंकि मेरे आने का वक्त चला गया और मेरे जाने के कई वक्त मौजूद हैं
मुझे उससे जरूर मिल लेना चाहिए
वह जहाँ पर जमा, वहीं पर उगा
वहीं पर लपक कर फैला. उसने वहीं पर पकड़ी रोशनी
और हवा को दूर- दूर तक प्रभावित किया
- वह कहीं भी अपने खिलाफ नहीं है
शाम को अपना चेहरा बाजार से ज्यों का त्यों वापस न लाने के बाद
आराम करने के लिए या पाने के लिए
उसके पूर्वजों के मरोड़े हुए हिस्सों पर आ कर बैठना
किसी ऐसे छिले हुए आदमी पर बैठना है जो मरते वक्त उकडूँ बैठा हुआ था
कुर्सी के हत्थों पर कोहनियाँ टेकते हुए मुझे लगता है
कि कारीगर के घुटनों पर जोर पड़ रहा है अब मुझे उठ ही जाना चाहिए
सोचते हुए अपने मरण और शील को दबोचते हुए
मैं उसके लिए निहत्था उठता हूँ
लेकिन मृतकों की संख्या पर छाया छोड़ती हुई चीजें
मुझे अपने ऊनी कोट की रक्षा के लिए प्रेरित करती हैं
क्योंकि मेरे कंधे पैड के बिना अधूरे हैं
जो पत्थरों के दिमाग को अपने लिए उपजाऊ बना रहा है
जो अपनी खाल को कोट की तरह पहने हुए है
मुझे उससे मिलते हुए यह नहीं भूलना चाहिए
कि आधा तो मैं अपने ही कमरे की खूँटियों पर टँगा हुआ हूँ
मेरे और धरती के बीच हमेशा एक चमड़े का टुकड़ा है
जबकि वह पूरा का पूरा उसी में खड़ा है
अपनी दवा के लिए अपने ही शरीर में बार-बार
पानी उबालते रहने से अच्छा मैं आज उससे पहचान कर लूँ
जिसमें कहीं न कहीं से समय जंगल की तरह घुस गया है
मुझे उससे मिलते हुए यह भी नहीं भूलना चाहिए
कि यह सारा नगर उसके पूर्वजों का आधा सहयोग है
और अपने आदर्शों को जाने बिना वह जमीन को अकेले पटा रहा है
उसकी जड़ों के साथ. भीतर
दो चार और जड़ें आकर फँस गई हैं
मुझे जाना चाहिए कि वह अब किस तरह हिल रहा है
ऊपर के सार्वजनिक अंधकार में उसके तजुर्बे कितने हरे हैं
बंजर इलाके को अँधेरे में खाते हुए
समूचे ढाल को टूटने से बचाते हुए
ऋतु के खिलाफ . पडोस के व्यवहार को तने पर झेल कर
करुणा को खुरदुरी खाल के नीचे दौड़ाते हुए
वह अपनी रुचि के लिए युद्ध और इंतजार में नंगा खड़ा है
अपने सारे शरीर को कारखाने की तरह सँभाले हुए
टहनियों को बंदूकों की तरह ताने हुए
उसने अपनी जड़ों को फौजी कतारों की तरह बट कर
मिट्टी की तबियत पर मोर्चा बाँध दिया है
अपने अंधकार से अपनी ऊँचाई का निर्णय करते हुए
उसके पत्ते उपदेश नहीं हैं. वे जीवित शब्द हैं
जिन्हें वह भीतर के अंधकार से बाहर लाया है
(उनकी शक्ल समाचारों की शक्ल नहीं है)
एक भ्रमण की जर्जरता से पहले वह बरफ में नहाएगा
उसने अपने अपना व्यक्तिगत जन्म लिया है
वह केवल प्रतीक के रूप में नहीं उगा
अगली लड़ाई के लिए मौसम की जासूसी में
वह अपने गोरिल्ला संसार को तहख़ाने में तैयार कर रहा है
विषाद और अनुभव के शब्दग्रस्त पत्तों को गिराते हुए
उसकी आँखों में अनेक इच्छाओं के कोमल सिर हैं
जिन्हें जब वह निकालेगा तो बचपन की मस्ती में
हवा, रोशनी और सारे
आकाश को दूध की तरह पी जाएगा.
वह कोशिश कर रहा है कि एक ही हफ्ते में
जिंदगी को तहलके की तरह मचा दे
आओ, और मुझे सिर ऊँचा
किए हुए उससे यादा जूझता हुआ
उससे यादा आत्मनिर्भर कोई आदमी बताओ
जो अपनी जड़ें फैला कर मिट्टी को खराब होने से बचा रहा है
1 comment:
Bahut khub...bahut hi rochak abhivyakti hai.
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