Saturday, November 9, 2013

यहां कायरता के चेहरे पर सबसे ज्यादा रक्त है


धूमिल को उनके जन्मदिन पर याद करते हुए उनकी एक कविता 'कुहासे में देश'. भाई आनंद प्रधान की फ़ेसबुक-वॉल से

हर तरफ धुआं है
हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है

अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है-
तटस्थता। यहां
कायरता के चेहरे पर
सबसे ज्यादा रक्त है।
जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी
उसके लिए, सबसे भद्दी
गाली है

हर तरफ कुआं है
हर तरफ खाईं है
यहां, सिर्फ, वह आदमी, देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है
या फिर गरीब है.

1 comment:

मुनीश ( munish ) said...

धूमिल की याद कभी धूमिल नहीं होगी । लेकिन उनके ज़िक्र पर ये चुप्पी सालती है । लगता है हिन्दी में कोई पाठक नहीं सब लेखक हो गए हैं । जो भी हो मुझे धूमिल की वो पंक्तियाँ याद आती हैं कि- आज सुदामा पान्डे मिल गए हरहुआ बाज़ार में...