-अदूनिस
१.
मृत्यु का एक स्वप्न
जब
मैंने अपनी मृत्यु को देखा सड़क पर
मुझे
अपना अक्स दिखाई दिया उसके चेहरे पर.
गाड़ियों
जैसे थे मेरे विचार
कोहरे
से छन कर आते
और
कोहरे में ही जाते हुए.
अचानक
मुझे लगा
मैं
आकाश से गिरी बिजली हूँ
या
रेत पर उकेरा गया
कोई
सन्देश.
२.
समुन्दर का एक स्वप्न
एक
कविता है मिह्यार*
रोशनी
के साथ
मकबरे
की रात में घाव करने को
जैसे
सूरज अपनी चमक से
उघाड़ता
है समुन्दर के चेहरे को
लहर
दर
लहर
दर
लहर
३.
कविता का एक स्वप्न
मुझे
समय की आवाज़ सुनाई देती है कविताओं में
हाथों
के स्पर्श में - यहाँ और वहाँ
आँखों
में जो पूछती हैं
क्या
अपने को बंद कर लेगा ग़ुलाब
अपनी
झोपड़ी के दरवाज़े
या
खोलेगा एक और दरवाज़ा.
...
यहाँ और वहाँ - हाथों का एक स्पर्श
और
आत्मबलिदान के साथ
बचपन
से ही बनी हुई दूरी गायब होती है
जैसे
कोई सितारा
उगा
हो ऐसे ही कहीं से
और
वापस ले गया हो
संसार
को
उसकी
मासूमियत के भीतर.
(*अबू अल हसन मिह्यार अल-दायामी – ग्यारहवीं सदी के फारसी कवि थे. उपमाओं और लक्षणाओं से भरपूर उनकी कविता ग़ज़ल और मर्सिये के अलावा अन्य विधाओं में भी अपनी अलग जगह रखती है. पूर्व में ज़ोरोस्त्रियन धर्म के अनुयायी मिह्यार ने अपने कवि-गुरु इब्न-ख़ालिकान के प्रभाव में शिया इस्लाम धर्म कुबूल कर लिया था. इस के बावजूद उन्हीं के एक परिचित ने पैगम्बर मोहम्मद के साथियों को बुरा-भला कहने के कारण उनकी कड़ी आलोचना की थी.
इब्न-ख़ालिकान, जिन्होंने बताया था कि मिह्यार का काव्यकर्म इतना विषद था कि वह चार दीवानों में भी नहीं समा सकता था, का विचार था कि मिह्यार के लेखन में “विचारों की महान सम्वेदनशीलता और विचारों की उल्लेखनीय गुरुता पाई जाती थी.” यह और बात है कि मिह्यार की शैली को “नकली और अमौलिक” भी कहा गया.)
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