Tuesday, December 3, 2013

किसी को दिक्कत नहीं इस खेल से


मार्च १०, १९५० को जन्मीं बल्गारियाई मूल की फेदिया फ़िल्कोवा ने सोफिया विश्वविद्यालय से ज़र्मन दर्शन में ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की. कई कविता संग्रह उनके प्रकाशित हैं और उन्होंने बीस से अधिक जर्मन ग्रंथों का अनुवाद किया है. उन्हें १९९१ में बल्गारिया का सर्वोच्च अनुवाद पुरूस्कार प्राप्त हुआ जबकि १९९५ में उन्हें ऑस्ट्रियाई स्टेट अवार्ड फ़ॉर आर्ट ट्रांसलेशन से नवाज़ा गया.

उनके ये अनुवाद लोकमत समाचार की वार्षिकी ‘दीप भव’ के लिए किये गए थे. वहीं से साभार -

मित्रता

मृत्यु भी मान जाती है कभी-कभी
ख़ासतौर पर अगस्त में जब
रातें अब भी छोटी
और अँधेरे के पास इतना सारा निबटाने को ...

तब ज़ाफ़रान के फूल तक चमकते हैं पतझड़ में.

एक पंख के तले

अपनी मर्ज़ी से खेलती हैं आवाज़ें
शब्द हैं उड़ान भरते परिन्दे,
पहुंचते हुए दूसरे परिंदों तक
जैसे पहुंचते हैं दूसरे परिन्दे उन तक.
किसी को दिक्कत नहीं इस खेल से.


मुस्कराती है ख़ामोशी.