पंकज श्रीवास्तव की फेसबुक वॉल से साभार -
"वेलेन्टाइन
डे’’ का खुमार उतर जाये तो जरा संत रविदास को भी याद
करियेगा. आज उनकी भी जन्मजयंती है. इस महान क्रांतिकारी संत कवि ने प्रेम के बारे में कुछ यूँ कहा है--
’रविदास’ प्रेम नहिं छिप सकै, लाख छिपाये कोय, प्रेम न मुख खोलै कभउँ, नैन देत हैं रोय...
लेकिन क्या प्रेम हवा में होगा.? नैना से नीर ना बहें, इसके लिए राज और समाज भी तो खुशी देने वाला होना चाहिये. ऐसा समाज, जहां प्रेम की राह में कोई बाधा ना हो. रविदास इस सिलसिले में एक सपना दिखाते हैं. 'अनपढ़' कहे जाने वाले ‘रैदास’ ने जो लगभग 500 साल पहले कहा, वही बात आधुनिक युग के तमाम क्रांतिकारी दार्शनिकों के पोथन्नों में मिलती है. रैदास लिखते हैं.
“ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न
छोट बड़ो सब मिलि बसें, रविदास रहें परसन्न.”
ये सपना पूरा ना हुआ तो इंसान ‘बीमार’ ही रहेगा. और प्रेम करने के लिए चंगा होना जरूरी है. मन चंगा हुआ तो कठौती में गंगा भी होगी और गंगाधर भी.
एक आख़िरी पर सब ज़रूरी बात. प्रेम की औदात्य महसूस करने के लिए मनुष्य होना भी ज़रूरी है. और मनुष्य पैदा नहीं होता, बनना पड़ता है.. कैसे ? रविदास बताते हैं--
जात-जात में जात है, जस केलन के पात
रैदास ना मानुष बन सके, जब तक जात ना जात..
तो हे 'प्रेम' के मारो! ... मनुष्य बनने के बारे में क्या ख्याल है...?
’रविदास’ प्रेम नहिं छिप सकै, लाख छिपाये कोय, प्रेम न मुख खोलै कभउँ, नैन देत हैं रोय...
लेकिन क्या प्रेम हवा में होगा.? नैना से नीर ना बहें, इसके लिए राज और समाज भी तो खुशी देने वाला होना चाहिये. ऐसा समाज, जहां प्रेम की राह में कोई बाधा ना हो. रविदास इस सिलसिले में एक सपना दिखाते हैं. 'अनपढ़' कहे जाने वाले ‘रैदास’ ने जो लगभग 500 साल पहले कहा, वही बात आधुनिक युग के तमाम क्रांतिकारी दार्शनिकों के पोथन्नों में मिलती है. रैदास लिखते हैं.
“ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न
छोट बड़ो सब मिलि बसें, रविदास रहें परसन्न.”
ये सपना पूरा ना हुआ तो इंसान ‘बीमार’ ही रहेगा. और प्रेम करने के लिए चंगा होना जरूरी है. मन चंगा हुआ तो कठौती में गंगा भी होगी और गंगाधर भी.
एक आख़िरी पर सब ज़रूरी बात. प्रेम की औदात्य महसूस करने के लिए मनुष्य होना भी ज़रूरी है. और मनुष्य पैदा नहीं होता, बनना पड़ता है.. कैसे ? रविदास बताते हैं--
जात-जात में जात है, जस केलन के पात
रैदास ना मानुष बन सके, जब तक जात ना जात..
तो हे 'प्रेम' के मारो! ... मनुष्य बनने के बारे में क्या ख्याल है...?
2 comments:
लोग मनुष्य बनने की तरफ ध्यान दें तो प्रेम तलाशना नहीं पडेगा .
सच है ।
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