अलाउद्दीन खिलजी के ज़माने की एक घटना है. उस ज़माने में
बादशाहों के दरबारों में अधिकतर खत्री लोग ही मंत्री तथा अन्य उत्तरदायी पदों पर
होते थे. अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में एक वजीर उधारमल खत्री थे. एक बार लड़ाई में
जब ज़्यादा खत्री काम आये तो उनकी विधवाओं में बहुत रोना-धोना हुआ. बहुत सी विधवाएं
तो सती हो गईं. शेष की बुरी हालत देखकर बादशाह ने उधारमल से कहा – “क्यों न इनकी
दूसरी शादी कर दी जाए.” उधारमल ने कहा “हुज़ूर हमारे यहाँ दूसरे विवाह का रिवाज़
नहीं. सती होना पसंद किया जाता है दूसरा विवाह नहीं. हुज़ूर का हुक्म है तो मैं
कोशिश ज़रूर करूंगा.” उन्होंने हर जगह के खत्रियों के चौधरियों को यह सन्देश भेजा. आगरे के खत्रियों के चौधरी जगधरमल ताजगंज में रहते
थे. उन्होंने इस काम को अंजाम देने का बीड़ा उठाया. सब चौधरियों में कोशिश की. आगरे
के खत्रियों की पंचायत की. इस पंचायत का उलटा ही असर पड़ा. सब खत्री चौधरी साहब के
खिलाफ हो गए. खत्रियों के जत्थे के जत्थे इनके यहाँ आकर इनको बेहूदा गालियाँ
सुनाते थे. साल की कुछ निश्चित तिथियों में चौधरी साहब की ज़िन्दगी भर और उनके बाद
भी यह क्रम चलता रहा. यहाँ तक कि इसने एक मेले का रूप धारण कर लिया. केवल खत्री ही
नहीं हर कौम के लोग इसमें शामिल होने लगे. तरह-तरह के गीत और कबित्त बन गए. मेले
में लल्लू जगधर को हर शख्स गालियाँ देता था. कुछ लोग जगधर को लल्लू मल का बाप कहते
हैं वैसे लल्लू का बाप जगधर था. मियाँ नज़ीर अकबराबादी के ज़माने में भी यह मेला उसी
रूप में लगता था. उसी के बारे में उन्होंने यह रचना की थी.
(नज़ीर ग्रंथावली से प्राप्त तफ़सील)
यह पोस्ट खासतौर पर प्रिय कवि-मित्र-अग्रज जनाब संजय चतुर्वेदी के वास्ते -
लल्लू जगधर का मेला
-नज़ीर अकबराबादी
है धूम आज यारो क्या आगरे के अन्दर
खलकत के ठठ बंधे हैं हर एक तरफ से आकर
गुल, शोर, सैर, चर्चा अम्बोह के सरासर
क्या सैर मच रही है, सुनता है मेरे दिलबर
टुक देख
रोशनी को अब ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
रोजा में ताजगंज के अम्बोह हो रहा है
महबूब गुलरुखों का इक बाग़ सा लगा है
माजून और मिठाई कोला है, संगतरा है
इक दम का यह नज़ारा ऐ यारो! वाह वाह है
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
ओढ़े है साल कोई महबूब शोख़ लाला
चीरा जारी का सर पर या सुर्ख है दुशाला
माशूक गुलबदन है आशिक है दीद वाला
लग्गड़ पिला के हरदम कहता है हुक्का वाला
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
हर जा कदम कदम पर गुलज़ार बन रहे हैं
नातें, कहानी किस्से हर जा बखन रहे हैं
सुल्फों के दम हैं, उड़ते सब्जी भी छन रहे हैं
हर भंग के कदह पर यह शोर ठन रहे हैं
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
गजरों का हर तरफ को बाज़ार लग रहा है
गन्ने, सिंघाड़े, मूली, तरबूज भी धरा है
अदना चबैने वाला परमल जो बेचता है
वह भी चला जो घर से कहता यही चला है
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
जो खूबरू तवायफ है हुस्न की घमंडी
सीना लगे से जिसके हो जाय छाती ठंडी
देख आशना का चेहरा और घेरदार बंडी
हर दम यह उससे हंस हंस कहती है शोख़ रंडी
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
रंडी जो अचपली है टुक दीद की लड़ारी
कुछ लोग उसके आगे
कुछ आशना पिछाड़ी
रथवान से कहे है सुन ओ! मियाँ पहाडी
क्या ऊंगता है जल्दी लो हांक अपनी गाड़ी
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
है हुस्न की जो अपने सरसार बाई नूरन
जिसका मिलाप यारो सौ बाइयों का चूरन
है यार उनके मिर्ज़ा और या कि शेख़ घूरन
मिन्नत से कह रहे हैं सुनती है बी ज़हूरन
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
दो रंडियां तवायफ जोबन है जिनका बाला
बरसे हैं जिनके मुंह पर सर पाँव से छिनाला
कोई कहे है “ऐ है” काफिर ने मार डाला
कोई पुकारता है ओ! नौबहार लाला
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
जो गुलबदन चले हैं सीना उठा-उठा के
कफदों की खटखटाहट पाजेब के झनाके
आती है धज बनाके जब आशना के आगे
कहता है वह आहा! हा! ओ चित लगन अदा के
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
जो नौबहार रंडी टुक हुस्न की है काली
बाला हिला के हरदम दे है हर एक को गाली
देख उस परी का बाला औ कुर्तियों की जाली
हर एक पुकारता है ओ आ आ! बाले वाली
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
कोई आशना से अपने लडती है खुद पसंदी
हरगिज़ न जावे याँ से बिन रूपये के बंदी
वह दे है आठ आने लेती नहीं यह गन्दी
कहता है जब तो जलकर क्या चल रही है खंदी
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
रस्ते में गर किसी जा दो लड़ रहे हैं झड़वे
करते हैं गाली दे दे आपस में भड़वे-भड़वे
कोई उसको रोकता है चल छोड़ मुझको भड़वे
कोई उसको कह रहा है क्या लड़ रहा है भड़वे
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
जो हीजड़े ज़नाने आए है करके हल्ले
हाथों में मह्वियाँ हैं और पोर-पोर छल्ले
जो उनके आशना हैं देख उनको हो के झल्ले
हंस हंस पुकारते हैं ओ! जानी प्यारे छल्ले
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
कोई उनसे कह रहा है ऐ! नौबहार काहू
तेरी तो झावनी ने दिल कर दिया है मजनूँ
वह सुन के बात उसकी मटका की आँखें कर हू
ताली बजा के हर आँ कहता है “क्या है मामू”
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
जो आशना हैं अपने लौंडे के इश्क मारे
फिरते हैं शाद दिल में लौंडे को घेर घारे
लाते हैं लड्डू पेड़े, कर हुस्न के नज़ारे
हर शोख़ गुलबदन से कहते हैं यों “कि प्यारे”
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
हर आन सुर्मा वाला सुर्मा संवारता है
औ प्यारी अंखड़ियों से आशिक को मारता है
सक्का जो छुल लगाकर पानी को ढालता है
वह भी कटोरे छनका हरदम पुकारता है
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
इसहाक शाह जो आशिक इक रिंद आ रहे हैं
हर शोख़ गुलबदन से आँखें मिला रहे हैं
लोग उनके रेख्तों पर गर्दन हिला रहे हैं
वह भी हरेक सुखुन पर यह ही सुना रहे हैं
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
कव्वाल या अताई जो गीत जोड़ता है
मुंहचंग ढमढमी से लच्छे ही जोड़ता है
जब गतगिरी में लाकर आवाज़ मोड़ता है
वह भी उसी के ऊपर ला तान तोड़ता
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
मुफलिस गरीब अदना कुछ होवे या न होवे
आया है देखने को तो गम को दिल से धोवे
कहता चला है दिल से कोई रात भूका सोवे
धेले की कौड़ियों में चल होनी हो सो होवे
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
ढलाई रोशनी से मामूर हो रही है
घर जगमगा अटारी पुर नूर हो रही है
हर ईंट ईंट उसकी सिन्दूर हो रही है
यह बात तो जहां में मशहूर हो रही है
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
नौ कारखाने वाले नौबत को सज रहे हैं
रंडी कहरवा नाचे धोंसे गरज रहे हैं
इस बात पे तो यारो नक्कारे बज रहे हैं
आये है जो भी याँ पर सब होश ताज रहे
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
यह भीड़ है कि रस्ता घोड़े को, न बहल को
हो दल के दल जहां पर क्या दोष है कुचल को
निकले हैं मार धक्के
जब चीर फाड़ दल को
सब उस घड़ी हैं कहते ललकार इस मसल को
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
होता है बरसवें दिन यह आगरे का मेला
मुद्दत से लल्लू जगधर है नाम उनका ठहरा
सौ भीड़ और भड़के अम्बोह और तमाशा
हरदम नज़ीर भी अब कहता है यों अहा! हा!
टुक देख रोशनी को अब
ताजगंज अन्दर
धी का टना
मरावे लल्लू का बाप जगधर
2 comments:
तो यह कहानी है 'लल्लू जगधर' के मुहावरे के पीछे। इतनी रोचक जानकारी पढकर मज़ा आ गया।
चलो कुछ ज्ञान तो मिला इतनी लंबी नज़्म पढ़ कर ,क्या नफासत से गालियाँ देने का रिवाज था
धन्यवाद आपको.
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