Sunday, February 9, 2014

मतलब है ये ‘नज़ीर’ का यूं देखकर बसन्त, हो तुम भी शाद दिल को हमारे भी ख़ुश करो


निकले हो किस बहार से तुम ज़र्द पोश हो
जिसकी नवेद पहुंची है रंगे बसन्त को
दी बर में अब लिबास बसन्ती को जैसे जा 
ऐसे ही तुम हमारे सीने से आ लगो
गर हम नशे में "बोसाकहें दो तो लुत्फ़ से
तुम पास हमारे मुंह को लाके हंस के कहो "लो"
बैठो चमन में नरगिसो सदबर्ग की तरफ़
नज़्ज़ारा करके ऐशो मुसर्रत की दाद को
सुनकर बसन्त मुतरिब ज़र्री लिबास से 
भर भर के जाम फिर मये गुल रंग के पियो
कुछ कुमरियों के नग़्मे को दो सामये में राह 
कुछ बुलबुलों का ज़मज़मा ए दिलकुशा सुनो
मतलब है ये ‘नज़ीर’ का यूं देखकर बसन्त

हो तुम भी शाद दिल को हमारे भी ख़ुश करो