ओ
प्रेयसी कवयित्री
-मणि
काफले
विधवा
इच्छाओं की
अनाथ
ख्वाबों की
निर्बल
बाहों की
आओ
ओ प्रेयसी कवयित्री
हम
इन सबकी कविताएं लिखें
तुम्हारे
कविताएं लिखने छोड़ने पर
मेरी
बस्ती में बुरांस खिलना बंद हो गया
कोयल
ने गाना छोड़ दिया
असीम
हर्ष के गीत
विजय
के नगाड़े बजने बंद हो गए
इस
समय
मैं
अपराधबोध
महसूस
कर रहा हूं
तुम्हें
कविताएं लिखने न देने पर
तुम
समझती होगी
मेरा
छल,
कपट, षडयंत्र
अनेक
बहानों में तुम्हें
रंगीन,
प्राणहीन गुडि़या बनाने
मेरे
घर संसार की
अधिकारविहीन
मालकिन बनाने
गहनों
और कपड़ों लत्तों में भुलाने के
सारे
के सारे षडयंत्र
ओ
मेरी खोई हुई प्रिय कवयित्री
मैं
तुम्हारे साथ लिखना चाहता हूं
अपनी
कुरूपता
मैं
आलोचित होने को तैयार हूं
मैं
अपराधबोध महसूस कर रहा हूं
तुम्हारे
विरुद्ध इस लड़ाई में
मैं
खुद सगर्व
अपनी
हार की घोषणा करता हूं
मैंने
धर्म के नाम पर
शरीर
विज्ञान के नाम पर
प्राकृतिक
नियम के नाम पर
प्रेम
के नाम पर
संस्कार
संस्कृति या
अन्य
कई नामों पर
युगों
से करता रहा
तुम्हारा
बलात्कार
करता
रहा
भीषण
अत्याचार
मैं
यह नहीं सह सकता
कैसे
सहा बोलो तुमने?
तुम्हारे
अंदर बह रही
पीड़ा
की ऐतिहासिक नदियां
तुम्हारे
भीतर पनप रही
असमानता
की पहाडि़यां
सभी-सभी
के बयान चाहिए तुमसे
अब
तुमसे
मेरे
अत्याचार का
मेरी
क्रूरता का
दस्तावेज
चाहिए
हमारी
संतानों को पता चले
तुम्हारी
सहनशीलता
और
मेरी क्रूरता का
यह
समूचा इतिहास
हिसाब-किताब
के बाद
पिफर
एक दिन
विधवा
इच्छाओं की
अनाथ
ख्वाबों की
निर्बल
बाहों की
आओ
ओ प्रेयसी कवयित्री
हम
इन सबकी कविताएं लिखें
(अनुवादः
नरेश ज्ञवाली)
2 comments:
खूबसूरत अंदाज !
behtreen abhivyakti
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