Sunday, March 23, 2014

लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था


भगत सिंह २३ मार्च को शहीद हुए थे. उस दिन को याद करते हुए पाश ने यह कविता लिखी थी. पाश को मालूम नहीं था कि व्यवस्था ठीक उसी तारीख को उनका क़त्ल करेगी. यह कविता पढ़ते हुए मुझे कई सारे अटपटे विचार आते हैं.


... खैर! इसे इस ठिकाने पर अरसा पहले दर्ज हो जाना चाहिए था, पता नहीं कैसे रह गयी.   

        २३मार्च

-                     अवतार सिंह पाश

उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग 
किसी दृश्य की तरह बचे 
ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाँकी की 
देश सारा बच रहा बाक़ी
 
उसके चले जाने के बाद 
उसकी शहादत के बाद 
अपने भीतर खुलती खिडकी में 
लोगों की आवाज़ें जम गयीं 

उसकी शहादत के बाद
देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने 
अपने चेहरे से आँसू नहीं, नाक पोंछी 
गला साफ़ कर बोलने की 
बोलते ही जाने की मशक की 

उससे सम्बन्धित अपनी उस शहादत के बाद 
लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए
कपड़े की महक की तरह बिखर गया 

शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

पाश के शब्दों में बहुत तेज है वाह !