Wednesday, April 23, 2014

हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम - हबीब जालिब और उनकी शायरी - १

फैज़ साहब ने हबीब जालिब के लिए कहा था वली दकनी के बाद अगर किसी शायर ने अवाम को छुआ था तो वो जालिब थे. वे दरअसल लोगों के शायर थे.

ज़िया उल हक़ की तानाशाही के दौर में पुलिस की लाठियां खाते हबीब जालिब

बात १९५९ की है. जनरल मोहम्मद अयूब खान द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था को ख़त्म कर शुरू की गयी पहली फ़ौजी तानाशाही को एक साल बीत चुका था. सत्ता पर अपने दखल को वैध और पुख्ता बनाने की नीयत से फ़ौजी शासन जनमत संग्रह की तैयारी कर रहा था. मार्शल लॉ अब भी लागू था और सेंसरशिप भी. नागरिकों के जीवन पर तानाशाह की जकड़ कास रही थी. लेखकों और कलाकारों को सम्मानित करने के उद्देश्य से बनाई गयी राइटर्स गिल्ड ने भी सत्ता के पक्ष में खड़ा होने का फैसला किया. इसका विरोध करने वाले जेल के हवाले किये गए. रेडियो और अखबारों का फ़ौजी तानाशाही जमकर दुरूपयोग कर रही थी.

ऐसे में १९५९ के साल, प्रस्तावित जनमत संग्रह के कोई एक साल पहले रावलपिन्डी से रेइदो पाकिस्तान पर एक लाइव मुशायरा प्रसारित किया गया. अधिकारीयों द्वारा दी गयी तहरीर को दरकिनार करते हुए एक युवा कवि ने बजाय पाकिस्तान की ख़ूबसूरती पर कसीदे काढ़ने के, बजाय सपनों और रूहानी बातों पर कविता सुनाने के गलियों-सडकों पर बह रहे लहू के बारे में कविता पढ़ना शुरू कर दिया. आम आदमी पर हो रहे अत्याचारों की बात करती उसकी आवाज़ पाकिस्तान भर में बरास्ता रेडियो गूंजने लगी

कहीं गैस का धुआं है कहीं गोलियों की बारिश,
शब्-ए-अहद-ए-कमनिगाही तुझे किस तरह सुनाएं.

खाकी वर्दियां अचरज में थीं. उनका झूठ टूट कर बिखर गया था. मुशायरा बंद करा दिया गया. स्टेशन डायरेक्टर को सजा हुई और शायर को जेल. लेकिन दुनिया जान गयी थी कि पाकिस्तान में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा था. सच बोलने का सहस किसी एक के पास तो था आखिरकार!

ये जालिब थे हबीब जालिब!

यह उन्हें जेल में डाले जाने की इकलौती घटना नहीं थी. अपनी बाकी ज़िन्दगी का एक बड़ा हिस्सा उन्हें जेल में बिताना पड़ा. 

...

हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम
किसी के डर से तकाज़ा नहीं बदलते हम

हज़ार ज़ेर-ए-क़दम रास्ता हो ख़ारों का
जो चल पड़े तो इरादा नहीं बदलते हैं हम

इसीलिए तो मोतबर नहीं ज़माने में
के रंग-ए-सूरत-ए-दुनिया नहीं बदलते हैं हम

हवा को देख के 'जालिब' मिसाल-ए-हम-असरां
बजा ये ज़ोम हमारा नहीं बदलते हम

(जारी)


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