Sunday, May 4, 2014

हम एक दूसरे को खा कर ही ज़िन्दा हैं - फ़रीद ख़ाँ की कवितायेँ - 3


एक बात

हम एक दूसरे को खा कर ही ज़िन्दा हैं. 
जो मेरे मुँह में समा सकता है उसे मैं खा जाऊंगा. 
मैं जिसके मुँह में समा सकता हूँ वह मुझे खा जाएगा . 

प्रकृति और सभ्यता की जंग में प्रकृति जीत गई. 
मैं समा गया अपने मुँह में. 

जो कुछ दिखता है वह वस्त्र है, आभूषण है

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