ओ मेरे पिता, मैं यूसुफ़ हूं
-महमूद दरवेश
-महमूद दरवेश
पिता! मैं यूसुफ़ हूं
ओ पिता!
मेरे भाई न मुझे प्यार करते हैं
न चाहते हैं मैं उनके बीच रहूं.
ओ पिता, वे मुझ पर आक्रमण करते हैं
मुझ पर पत्थर फेंकते हैं
और मुझ पर करते हैं गालियों की बौछारें.
मेरे भाई चाहते हैं मैं मर जाऊं
ताकि वे मेरी झूठी तारीफ़ें कर सकें.
वे मेरे आगे बन्द कर देते हैं तुम्हारा द्वार
और मुझे निर्वासित कर दिया गया
तुम्हारे खेतों से.
उन्होंने मेरी अंगूर की बेलों में ज़हर भर दिया
उन्होंने मेरी अंगूर की बेलों में ज़हर भर दिया
ओ पिता!
जब बहती हुई बयार
खेला की मेरे बालों से
वे सब भर गए डाह से
उन्होंने तुम पर और मुझ पर बेतरह ग़ुस्सा किया.
मैंने उनके साथ क्या किया है, पिता?
और क्या नुकसान पहुंचाया है उन्हें?
तितलियां आराम करती हैं मेरे कन्धों पर.
गेहूं झुकते हैं मेरी तरफ़
और चिड़िया मंडराती हैं मेरे हाथों के ऊपर
तब क्या बुरा किया मैंने, पिता?
और मैं ही क्यों?
तुम ही ने मेरा नाम धरा था यूसुफ़
उन्होंने मुझे कुंए में धकेला
और भेड़िये पर उसका इल्ज़ाम लगाया.
ओ पिता!
भेड़िया अधिक दयालु होता है
मेरे भाइयों से
क्या मैंने किसी का बुरा किया
जब मैंने बताया अपने स्वप्न के बारे में?
मैंने सपना देखा, ग्यारह नक्षत्रों का
और सूरज का और चन्द्रमा का
वे सब झुके हुए थे मेरे सामने.
दरवेश की बहुत
सी कविताओं को को कई अरब संगीतकारों द्वारा गीतों में ढाला गया. मार्सेल ख़लीफ़े, माजिदा एक रूमी
और अहमद क़ब्बूर उनमें मुख्य थे. ख़लीफ़े को ईशनिन्दा और धार्मिक भावनाओं को ठेस
पहुंचाने जैसे आरोपों का सामना करना पड़ा क्योंकि दरवेश की इस कविता को संगीत में
ढालते हुए ख़लीफ़े ने क़ुरान की एक आयत का इस्तेमाल किया था. इस कविता में दरवेश
जोसेफ़ (यूसुफ़) के दर्द को साझा करते हैं जिसे उसके भाइयों ने अस्वीकार कर दिया था.
जोसेफ़ यानी यूसुफ़ की यह कहानी यहां फ़िलिस्तीनियों को अस्वीकार किए जाने के एक रूपक
के तौर पर इस्तेमाल की गई है.
1 comment:
बहुत खूब ।
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