अन्ना कामीएन्स्का (१२ अप्रैल १९२०- १० मई १९८६) बीसवीं सदी के पोलैंड के उन अनूठे समूह से
ताल्लुक रखती हैं जिस में से असाधारण कवि प्रस्फुटित हुए. मीरोन बियालोज्युस्की,
यूलिया हार्तविग, ज्बिगनियू हेर्बेर्त, कारपोविक्ज़, ताद्यूश रूज़ेविच और विस्वावा
शिम्बोर्स्का जैसे प्रमुख नामों के साथ अन्ना कामीएन्स्का इस सूची में विराजमान
हैं. १९२० के दशक में जन्मे ये सारे दूसरे विश्वयुद्ध के समय युवा थे. वे उस
ऐतिहासिक सैलाब को समझ चुके थे जो पोलैंड पर जर्मनों द्वारा किया गया कब्ज़ा अपने
साथ ले कर आया था. युद्ध के बाद के उत्पातभरे वर्षों और उसके बाद की कम्यूनिस्ट
तानाशाही से भी इन सब ने रू-ब-रू होना पड़ा था. इनमें से हरेक कवि ने प्रचुर मात्रा
में बेहद सशक्त रचनाकर्म किया. १९८० के नोबेल विजेता और अपने से थोड़ा बड़े कवि
चेस्वाव मीवोश के साथ मिलकर इन सबने पोलिश कविता के लैंडस्केप को रूपांतरित कर
दिया और उसने विश्व साहित्य के परिदृश्य पर व्यापक प्रभाव डाला.
“मेरी साहित्यिक पीढ़ी ने आलोचकों की धूमधाम के साथ कविता में प्रवेश नहीं
किया,” अपनी एक किताब के आमुख में अन्ना ने लिखा था, “हम फायरिंग स्क्वाडों और फूटते
बमों के दरम्यान लिखना सीख रहे थे.”
अन्ना की रचनाओं से पाठकगण पहले से परिचित हैं. आज उनकी दो और कवितायेँ:
एक दीया
मैं समझने के लिए लिखती हूँ न कि ख़ुद को
अभिव्यक्त करने के लिए
मैं कुछ समझ भी नहीं सकूंगी, यह स्वीकार
करने में कोई शर्म नहीं मुझे
इस न जानने को साझा करती हूँ चिनार की
एक पत्ती के साथ
सो मैं अपने सवालों समेत उन शब्दों के
पास जाती हूँ जो मुझ से ज़्यादा अक्लमंद हैं
उन चीज़ों के पास जाती हूँ जो हमारे बहुत
बाद तक बनी रहेंगी
मैं इंतज़ार करती हूँ कि संयोग मेरी मदद
करेगा अक्लमंद बनने में
मुझे उम्मीद है खामोशी मुझे विवेक
प्रदान करेगी
मुमकिन है अचानक कुछ घट जाए
और उस तेल के दीये की लपट की आत्मा के
रहस्यभरे
सच की तरह धड़के
जिसके सम्मुख हम अपने सिर झुकाते थे
जब हम बहुत छोटे थे
और दादीमाँ डबलरोटी पर एक क्रॉस बनाया
करती थीं
और हम हरेक चीज़ में यक़ीन करते थे
सो फिलहाल मुझे किसी भी चीज़ की
उतनी लालसा नहीं सिवा
उस यक़ीन के.
दूसरा संसार
मेरा यक़ीन नहीं है दूसरे संसार पर
लेकिन मैं तो इस संसार पर भी भरोसा नहीं
करती
जब तक कि वह बिंधा न हुआ हो रोशनी से
मैं यक़ीन करती हूँ
सड़क पर कार से कुचली गयी एक औरत के शरीर
पर
आधी-जल्दबाजी, आधी-भंगिमा
और आधे-धक्के में ठहरे
शरीरों पर यक़ीन करती हूँ मैं
जैसे कि वे जाने कब से प्रतीक्षा कर रही
हों
कि एक अर्थ कभी भी
उठाना शुरू करे अपनी तर्जनी
मुझे अंधी आँख पर भरोसा है
बहरे कान पर
कुचली गयी टांग पर
आँख के कोने की झुर्री को
गाल की लाल लपट को
मैं यक़ीन करती हूँ नींद के गहरे विश्वास
में लेटी देहों पर,
मैं यक़ीन करती हूँ
अजन्मी अशक्तता को लेकर आयु के धैर्य पर
मैं यक़ीन करती हूँ उस एक बाल पर जिसे
छोड़ गया एक मृतक अपनी भूरी टोपी पर
मैं यक़ीन करती हूँ
चमत्कारी बने हुए चमकीलेपन पर
जो हरेक चीज़ पर चमकता है
अपनी पीठ के बल कसमसाते
किसी पिल्ले जैसे
उस गुबरैले पर भी मैं यक़ीन करती हूँ
मैं यक़ीन करती हूँ कि बारिश
स्वर्ग और धरती को साथ सी देती है
और कि इस बारिश में फ़रिश्ते उतरा करते
हैं
पंख लगे मेंढकों जैसे नज़र आते हुए
मैं यक़ीन नहीं करती इस संसार पर
जो खाली होता है
किसी स्टेशन की तरह भोर के वक्त
जबकि सारी रेलगाड़ियाँ
सुदूर के लिए जा चुकीं
यह दुनिया एक है
खासतौरपर जब वह एक ओस में जागती है
और ईश्वर निकलता है
मनुष्यों और पशुओं के स्वप्नों
की पत्तियों पर
टहलने.
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