Saturday, October 11, 2014

बजाता हूँ वॉयलिन, लिखता हूँ भौतिकी - शिवप्रसाद जोशी की नई कवितायें – १


आइन्श्टाइन

हवाएँ उड़ाती जाती हैं सुरों को
वॉयलिन के तारों से आती है
सीखने की आवाज़
मेरे शब्द वाक्य बनने से पहले एक तार बन जाते हैं
इस तार को छेड़ने से खुलने लगती हैं कई कहानियाँ
विश्व युद्धों से लेकर मेरे अपने युद्ध तक
इस विचार के ख़िलाफ़
जो सरकार बना बैठा है
मैं बजाता हूँ वॉयलिन

लिखता हूँ भौतिकी.

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