Wednesday, October 29, 2014

समस्याओं के घाट पर हम पाँच साल इसी तरह तौलिया लपेटे खड़े हैं



जिसके हम मामा हैं

- शरद जोशी

एक सज्जन बनारस पहुँचे स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आया

'मामाजी! मामाजी!' - लड़के ने लपक कर चरण छूए

वे पहचाने नहीं बोले - 'तुम कौन?'

'मैं मुन्ना आप पहचाने नहीं मुझे?'

'मुन्ना?' वे सोचने लगे

'हाँ, मुन्ना भूल गए आप मामाजी! खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गए'

'तुम यहाँ कैसे?'

'मैं आजकल यहीं हूँ'

'अच्छा'

'हाँ'

मामाजी अपने भांजे के साथ बनारस घूमने लगे चलो, कोई साथ तो मिला कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर.

फिर पहुँचे गंगाघाट सोचा, नहा लें.

'मुन्ना, नहा लें?'

'जरूर नहाइए मामाजी! बनारस आए हैं और नहाएँगे नहीं, यह कैसे हो सकता है?'

मामाजी ने गंगा में डुबकी लगाई - हर-हर गंगे.

बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब! लड़का... मुन्ना भी गायब!

'मुन्ना... ए मुन्ना!'

मगर मुन्ना वहाँ हो तो मिले वे तौलिया लपेट कर खड़े हैं.

'क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है?'

'कौन मुन्ना?'

'वही जिसके हम मामा हैं'

'मैं समझा नहीं'

'अरे, हम जिसके मामा हैं वो मुन्ना'

वे तौलिया लपेटे यहाँ से वहाँ दौड़ते रहे मुन्ना नहीं मिला.

भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है मित्रो! चुनाव के मौसम में कोई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है मुझे नहीं पहचाना मैं चुनाव का उम्मीदवार होनेवाला एम.पी. मुझे नहीं पहचाना? आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख्स जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट लेकर गायब हो गया वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया.

समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं सबसे पूछ रहे हैं - क्यों साहब, वह कहीं आपको नजर आया? अरे वही, जिसके हम वोटर हैं वही, जिसके हम मामा हैं.

पाँच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट पर खड़े बीत जाते हैं.