Wednesday, October 29, 2014
बुझी हुई शाम का धुआँ हूँ, अपने मरकज़ को जा रहा हूँ
बेग़म अख्तर की एक और कम सुनी गयी ग़ज़ल –
1 comment:
सुशील कुमार जोशी
said...
वाह बहुत सुंदर ।
October 29, 2014 at 10:10 PM
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1 comment:
वाह बहुत सुंदर ।
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