Thursday, November 27, 2014

मैं रह सकती हूँ किसी भी शक्ल जो तुमसे गढ़ी जाती है

इसी तरह

- अनीता वर्मा

तुम शुरुआत हो इस अनन्त की

मैं रह सकती हूँ किसी भी शक्ल
जो तुमसे गढ़ी जाती है
तुम्हारे आकार ‌और अनुभव में
मैं किसी विश्वास की तरह हूँ
तुम्हारे बुखार में ठंडी बून्दों की तरह
तुम्हारे कोहराम में मौन की तरह
मैं हूँ तुम्हारे शुरुआत ‌और तुम्हारे अंत में

(चित्र: वान गॉग की कलाकृति)

No comments: