Saturday, January 17, 2015

कैसी-कैसी क्रिकेट कमेंट्री - 17 - ब्रायन जॉनस्टन

टेस्ट मैच स्पेशल के दौरान
बाएँ से दाएं बिल फ्रिंडल, जोनाथन एग्न्यू और ब्रायन जॉनस्टन

अगर हम आर्लट को उनकी साहत्यिक प्रतिभा और शब्दों के साथ उनके खेल के लिए याद करते हैं तो जॉनस्टन को उनकी बुद्धिमत्ता, फकीराना दोस्ती और चुटीले वाक्यों के लिए लोग कभी नहीं भूल सकते. कमेंट्री बॉक्स में जिस तरह का साझा वातावरण उन्होंने अपने मजाकिया और जिंदादिल व्यक्तित्व के कारण बना पाने में सफलता पाई वह अब क्रिकेट कमेंट्री की एक बड़ी और महत्वपूर्ण विरासत मानी जाती है.

ऑक्सफ़ोर्ड की पुरानी शैली का अनुसरण करते हुए हर किसी के निकनेम रखे जाने का सिलसिला चल निकला. अथक स्कोरर बिल फ्रिन्डल को उनकी घनी दाढी दाढ़ी के कारण “बीयर्डर्स” कहा गया तो हैनरी ब्लोफेल्ड को “ब्लोअर्स”. जोनाथन एग्न्यू को अपने मूल नाम से “एगर्स” में कायांतरित होने में कोई दो दशक लग गए. इसकी तार्किक परिणति यह हुई कि ब्रायन जॉनस्टन का नाम “जॉनर्स” पड़ा.

इसके बाद नंबर आता है उनके कुछ ब्लूपर्स का जो स्वतःस्फूर्त थे.

“वैलकम टू लेस्टर व्हेअर रे इलिंगवर्थ हैज़ जस्ट रिलीव्ड हिम्सेल्फ़ एट द पैविलियन एंड.”

कई बार शब्दों का यह खेल बाकायदा आर्लट और जॉनस्टन के बीच खेला जाता था. आसिफ़ मसूद को लेकर किया गया एक निश्छल मज़ाक इस सीरीज में पहले अपनी जगह पा चुका है.

टेस्ट मैच स्पेशल में लाये जाने वाले स्वादिष्ट केक तो कमेंट्री बॉक्स का हिस्सा थे ही, उन्होंने दुनिया भर से आने वाले पाठकों के पत्रों के अंशों का पाठ करना भी इस कार्यक्रम में शुरू किया. कई बार तो इन अंशों का क्रिकेट के खेल से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं होता था.

एक दूसरे की टांग खींचना भी बॉक्स में एक तरह से क्रोनिक हो गया था. मुंह में केक भरे अपने साथियों पर जॉनस्टन बिलकुल बेहतरीन टाइम किये हुए सवाल उछलते थे तो उनके मुंहों से एक से बढ़कर एक मजाकिया वाक्य निकला करते थे. यह बहुत कुछ ऐसा होता था जैसे स्कूली लड़के आपस में मसखरी कर रहे हों. अक्सर सारी कमेंट्री टीम असहाय होकर ठहाकों में डूब जाया करती. ट्रेवर बेली याद करते हैं कि एक दफा ठीक चाय से पहले वक़ार यूनुस की एक बेहतरीन गेंद पर जॉनस्टन का कमेन्ट था: “हाउ कैन ही व्हिप इट आउट जस्ट बिफ़ोर टी?”

लेकिन जब भी गेंदबाजी कर रही टीमें लेग स्टम्प के बाहर गेंद फेंकने की नेगेटिव नीति अपनातीं ब्रायन खीझ जाते थे.

जहाँ उनकी जीवंत आवाज़ सारे देश की लाडली बन चुकी थी, उनके सारे ही साथी उनके इस मजाकिया व्यवहार को पचा सकने में खुद को असमर्थ पाते थे. विशेषतः आर्लट का मानना था कि बहुत ज्यादा खिलंदड़ी करने से टेस्ट क्रिकेट की गरिमा कम हो जाती थी. वहीं कमेंट्री करते समय जितनी क्लेरेट वाइन आर्लट पी जाया करते थे, जॉनस्टन को उस पर ऐतराज़ था. ये अलग बात है कि दोनों ने आपस में एक पेशेवर सामंजस्य बनाये रखा और संसार भर को नायब क्रिकेट कमेंट्री का रसास्वादन करवाया.

जोनाथन एग्न्यू का मानना है कि बावजूद अपनी हल्की फुल्की टिप्पणियों के, जॉनस्टन मैचों और साक्षात्कारों के लिए जितनी मेहनत करते थे उतनी कर सकना हर किसी के बस की बात नहीं होती थी. किसी भी दौरे की शुरुआत से पहले जॉनस्टन खिलाडियों के हावभाव और हेयरस्टाइल की गहरी स्टडी करते थे ताकि फील्डिंग करते समय उन्हें नब्बे गज की दूरी से आसानी से नाम लेकर पहचाना जा सके. किसी भी सेलेब्रिटी का इंटरव्यू लेने से पहले वे उससे सम्बंधित सारी उपलब्ध सामग्री का अध्ययन करना ज़रूरी समझते थे.

इसके बावजूद क्रिकेट कमेंट्री के सबसे मनोरंजक किस्सों में से एक के साथ एग्न्यू का नाम जॉनस्टन के साथ जुड़ ही गया.  

१९९१ में इंग्लैण्ड और वेस्ट इंडीज़ के बीच ओवल में टेस्ट चल रहा था. इयान बोथम ने कर्टली एम्ब्रोस के एक खतरनाक बाउंसर को हुक करने की कोशिश की. गेंद अनुमान से ज्यादा तेज़ थी और वह बोथम के शरीर पर लगी. बोथम अपना संतुलन खो बैठे और डगमगाते हुए बेहद अटपटे तरीके से स्टम्प्स की तरफ गिरे लेकिन सम्हलते सम्हलते भी उनकी दाईं जांघ से बेल्स नीचे गिर गईं. क्रिस्टोफर मार्टिन जेन्किन्स ने उनके इस आउट होने को बेहद विस्तार से वर्णित किया.

टी ब्रेक के बाद, जब जॉनस्टन और एग्न्यू खेल के बारे में बातें कर रहे थे, एग्न्यू ने बोथम के हित विकेट को यूं बयान किया: “ही जस्ट डिड नॉट गेट हिज़ लेग ओवर.”

अब “लेग ओवर” इंग्लैण्ड की देशज भाषा में सेक्स करने को कहा जाता है. अब इस मामले में चूंकि सम्बंधित शख्स इयान बोथम थे, मामला बेहद बवंडर वाला बन गया था. इस अजब स्थिति में जॉनस्टन अपना संतुलन बनाए रखने का एक असफल प्रयास करते रहे लेकिन अंततः उनके मुंह से जोर की हंसी फट पड़ी और वे चिल्लाते हुए बोले “अब बस करो यार एगर्स...” अगले कुछ मिनटों तक कमेंट्री के बदले हंसने की आवाजें आती रहीं इस पर प्रोड्यूसर पीटर बैक्सटर दांत भींचते बॉक्स में पहुंचे और बोले “अब बंद करो यह सब.” अब तक जॉनस्टन ने अपना संतुलन वापस पा लिया था और वे इतना ही कह सके : “उसके बाद टफनेल आए थे ... उन्होंने बारह मिनट तक बैटिंग की थी ... फिर उन्हें हेंस ने कैच कर लिया ... इंग्लैण्ड आल आउट ४१९. मैंने अब हंसना बंद कर दिया है.”

जहाँ एक तरफ एग्न्यू को लगता था कि उन्होंने अपना कमेंट्री करिअर तबाह कर लिया है जिसमें आये उन्हें कुछ महीने ही बीते थे, जॉनस्टन को यह विचार सालता रहा कि ७९ साल की आयु में उनसे ऐसी पेशेवराना चूक हो गयी. लेकिन अगले दिन की चिठ्ठियों में बयान किया गया था कि किस तरह दोनों की “कमेंट्री” के दौरान ट्रैफिक तक बाकायदा रुक गया था और ड्राइवर लोग हंसी से दोहरे हो गए थे. कई लोगों को गाडी साइड में लगाकर अपनी हंसी निकालनी पडी. लोगों के बीच उस समय की कमेंट्री के टेप्स की भारी मांग हो गयी. टेस्ट मैच स्पेशल इतना लोकप्रिय अपने इतिहास में कभी नहीं रहा था.
     
जिन दो और परम्पराओं की बुनियाद जॉनस्टन ने डाली वे थीं – ‘शैम्पेन मोमेंट्स’ जिसमें दिन के खेल का सर्वश्रेष्ठ लम्हा सहेजा जाता था और ‘व्यू फ्रॉम द बाउंड्री’ जिसमें टेस्ट मैच के दौरान किसी सेलेब्रिटी से आधे घंटे का इंटरव्यू पेश किया जाता था. इनमें से कुछ इंटरव्यू बेहद यादगार थे. सन १९८० में ९४ साल के नाटककार बेन ट्रेवर्स ने डब्लू. जी. ग्रेस के संस्मरण सुनाने के साथ ही ब्रैडमैन के पहले टेस्ट मैच को भी याद किया.

बाद में आने वाले मेहमानों में अभिनेता और लेखक स्टीफन फ्राई भी एक थे. उन्हें ब्रायन ने “आह फ्रायर्स” कह कर संबोधित किया था. यह हिम्मत केवल ब्रायन जॉनस्टन के बस की बात थी.

८१ साल की आयु में जॉनस्टन की मृत्यु के बाद फ्राई ने लिखा: “जब भी मुझे लगता है कि मुझे इंग्लैण्ड की अश्लीलता, भोथरापन, अज्ञान, टुच्चापन, निराशा, और विशुद्धतावादी मूर्खता पराजित कर देगी, मैं एक ख़ास तरह के इन्ग्लिशमैन की ईजाद करता हूँ जो बहादुर, मजाकिया, शालीन, दयालु, समझदार, और सम्मान करने वाला हो ... सही तरीके से ‘ओल्ड फैशंड’ ... जिसे हंसी पसंद हो, क्रिकेट की समझ हो ... यह असंभव है कि इस धरती पर ऐसे इंसान का अस्तित्व हो; लेकिन था तक आदमी ऐसा ... और उसका नाम था ब्रायन जॉनस्टन.” उन्होंने अपना स्मृतिलेख “स्टॉप इट एगर्स” पर समाप्त किया था.

उनके अवसान से समूची टेस्ट मैच स्पेशल टीम ग़मगीन हो गयी. लेकिम उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि उनके बाद उनकी स्मृति में किया गया एक कार्यक्रम बेहद खुशनुमा तरीके से समाप्त हुआ. बीबीसी की नौ बजे की खबर थी “आई हैव स्टॉपड लाफिंग नाव”. जल्द ही प्राइवेट आई का एक कार्टून आया जिसमें स्वर्ग के द्वार खटखटाते जॉनस्टन ईश्वर से कहते दिखाए गए थे “हैलो गॉडर्स”

२००० लोगों की उपस्थिति से खचाखच भरे वेस्टमिन्स्टर एबी में उनकी मेमोरियल सर्विस में द ग्रेनेडियर गार्ड्स ने जॉनस्टन की प्रिय धुनें बजाईं जिनमें ऑस्ट्रेलिया के सोप ओपेरा ‘नेबर्स’ की थीम ट्यून शामिल थी. ऐसा इस ऐतिहासिक चर्च के इतिहास में संभवतः पहली और आख़िरी बार हुआ था.

मुख्य वक्ताओं में कॉलिन काउड्रे और प्रधानमन्त्री जॉन मेजर्स शामिल थे. जॉन मेजर ने कहा: “गर्मियां अब फिर कभी वैसी नहीं होंगीं.”


एक और दिल छू लेने वाली घटना घटी. अब बूढ़ी हो चुकीं आइलीन कोहेन फिर से टेस्ट मैच स्पेशल की टीम के लिए ग्रेस गेट्स पर एक ताज़ा बनाए गए चौकलेट केक के साथ पहुँचीं. जहाँ जहां क्रिकेट खेला जाता रहेगा ब्रायन जॉनस्टन की मिठास बनी रहेगी. 

(जारी- अगली कड़ी से जिम स्वान्टन)

No comments: