Saturday, January 17, 2015

कैसी-कैसी क्रिकेट कमेंट्री - 16 - ब्रायन जॉनस्टन


१९६८ में जब एक टेस्ट मैच के दौरान इंग्लैण्ड जीतने को था जब मौसम ने खेल खराब कर दिया. ऐसा पानी बरसा कि मिनटों में मैदान में बारिश के कारण पानी के चहबच्चे बन गए. ऐसे में कप्तान कॉलिन काउड्रे ने बाहर आकर दर्शकों को प्रोत्साहित किया कि वे तौलियों, पोंछों, कम्बलों और रूमालों से लैस होकर आएं और मैदान सुखाने में मदद करें. यह अपील बेहद सफल रही. चारों तरफ लकड़ी का बुरादा बिखरा हुआ था. मैच समाप्त होने में कुल तीन मिनट बचे थे जब डेरेक अंडरवुड ने जॉन इन्वेरेरिटी का विकेट लेने में कामयाबी हासिल की और इंग्लैण्ड नाटकीय रूप से मैच जीत गया. उस मैच को जिसने देखा था, उसे ब्रायन जॉनस्टन का अपनी सबसे ऊंची आवाज़ में चिल्लाते हुए कमेंट्री करना याद है: “ही’ज़ आउट! ही’ज़ आउट एलबीडब्ल्यू एंड इंग्लैण्ड हैव वन.”

१९६१ में टेलीविज़न पर ही हैडिंगली के मैदान पर कमेंट्री करते हुए उन्होंने अपने अब अति-विख्यात हो चुके शब्द बोले थे: “नील हार्वे इज़ स्टैंडिंग एट लेग स्लिप, लेग्स वाइड अपार्ट, वेटिंग फॉर अ टिकल.”

और जब लॉर्ड्स में अपना पहला मैच खेल रहे तेज़ गेंदबाज़ एलन वार्ड की गेंद ग्लेन टर्नर के गुप्त हिस्से में टकराई और टर्नर दर्द में छटपटाने के बाद अंततः उठ खड़े हुए और गार्ड लेकर तैयार हो रहे थे तो पहले जॉनस्टन ने टर्नर के पीले पड़ गए चेहरे का लम्बा चौड़ा वर्णन किया और जैसे ही वार्ड ने रन-अप शुरू किया वे बोले “वन बॉल लेफ्ट!”

१९६३ में वे बीबीसी से क्रिकेट संवाददाता बने और तब जाकर उन्हें कभी कभी टेस्ट मैच स्पेशल में हिस्सा लेने को मिला जहाँ वे टीवी के साथ अपनी रेडियो ड्यूटी भी निभाया करते थे. आमतौर पर वे टीवी पर घरेलू टेस्ट मैच कवर किया करते थे. रेडियो पर वे सर्दियों के दौरे कवर करने के साथ शनिवारों को काउंटी मैचों की कमेंट्री किया करते.

१९६० के दशक के अंत तक वे आर्लट के साथ क्रिकेट की प्रतिनिधि आवाज़ बन गए और निश्चित ही उन्हें ज्यादा पहचान हासिल थी. यह लम्बे समय तक नहीं बना रह सका क्योंकि एक आकस्मिक घटना ने उनके प्रसन्नता से भरे संसार को सदमा पहुंचा देना था.

१९७० में बीबीसी टेलीविज़न ने बिना किसी तरह का स्पष्टीकरण या कारण दिए जॉनस्टन को अपने स्टाफ से निकाल दिया. कुछ लोगों का मानना है कि टेस्ट एंड काउंटी क्रिकेट बोर्ड अपने उत्पाद के लिए एक धीरगंभीर इमेज बनाना चाहता था जिसके भीतर ब्रायन के ह्यूमर के लिए कोई जगह न थी. दूसरा अनुमान यह है कि बीबीसी अपने कमेंट्री बॉक्स में केवल भूतपूर्व टेस्ट क्रिकेटरों को देखन चाहता था. यह दोनों ही बातें अनुमान पर आधारित लगती हैं क्योंकि कुछ ही दिनों बाद डेनिस कॉम्पटन को भी बीबीसी से निकाल दिया गया.

जो सबसे तार्किक बात समझ में आती है वह सबसे अधिक निराश करने वाली है. ख़ास तौर पर यह देखते हुए कि ये दोनों ही (कॉम्पटन और जॉनस्टन) विशुद्ध रूप से भले इंसान थे. दोनों का मानना था कि खेल और राजनीति को आपस में नहीं मिलने दिया जाना चाहिए. इतिहास का वह ऐसा बिंदु था जब दक्षिण अफ्रीका और रंगभेद के प्रश्न अपने बदसूरत चेहरे उठा रहे थे और “पोलिटिकली इनकरेक्ट” वक्तव्यों के लाइव ब्रॉडकास्ट हो जाने को लेकर अधिकारी लोग बेचैन हुए बिना नहीं रह सकते थे.

इस अंतिम कयास में थोड़ी बहुत सच्चाई हो सकती है. एक इकलौता उदारण जब जॉनस्टन ने अपने ह्यूमर को त्याग कर वाकई बहुत कड़ी भाषा का प्रयोग किया था, १९८३ में एमसीसी की मीटिंग में सामने आया था जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के बायकाट के खिलाफ़ हुए बहुत तुर्श भाषण दिया था. ऐसा नहीं कि वे रंगभेद के पक्षधर थे. सच तो यह है कि वे समझते थे कि इसका क्रिकेट  से कोई लेनादेना नहीं था.

जहाँ एक तरफ जॉनस्टन अपनी नौकरी छीन लिए जाने की बुरी खबर को पचाने की कोशिश कर रहे थे, वहीं उन्हें मिलने बीबीसी आउटसाइड ब्रॉडकास्ट्स के मुखिया रॉबर्ट हडसन आये और उन्हें टेस्ट मैच स्पेशल से पूर्णकालिक तौर पर जुड़ जाने को कहा. अपने टेलीविज़न के साथियों की तरफ से कोई जायज़ स्पष्टीकरण न दिए जाने का दुःख जॉनस्टन को ज़िंदगी भर सालता रहा. टेस्ट मैच स्पेशल में आना उनकी प्रतिभा के लिए वाकई घर वापस आने जैसा था.   

उस दिन के बाद से दुनिया भर में क्रिकेट देखने वालों ने एक नया काम करना शुरू किया. टीवी पर कमेंट्री की आवाज़ जीरो कर रेडियो को पूरे वॉल्यूम पर बजाते हुए जॉनस्टन की कमेंटी सुनते हुए लुत्फ़ उठाना.


(जारी)

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