Thursday, January 22, 2015

ख़बरदार ज़ोर से न बोलना


भविष्यवक्ता से

-अदूनिस

घंटियाँ हैं उसकी भवें
जो बजाती हैं मेरे अजानी क़िस्मत को
मेरे वर्तमान और मेरे खौफ़
और उस सब को जो भी मैं रहा हूँ.

वह एक निगाह करती है और
इशारे दिपदिपा उठते हैं लालटेनों की तरह
जैसे की वह टंगी हुई हो
समय की बरौनियों से.
वह लिए चलती है अपने साथ
हरेक युग के आरम्भ की गाँठ
चाहे सुबह हो
चाहे बादल लगे हों, हवा चल रही हो चाहे

वह मेरी उंगली थामती है और गौर से देखती है,
सोचती है,
उलट-पुलट करती है गुफाओं को
खोद निकालती है वर्णाक्षरों को.

हंसोगी नहीं, खिल्ली नहीं उड़ाओगी तुम?
फुसफुसाओगी नहीं?
यह मेरा हाथ है, थामो इसे,
ले लो मेरा आने वाला कल.
ईश्वर से बोलो, कोई तरकीब निकालो
और फुसफुसाओ, और ख़बरदार

ज़ोर से न बोलना.

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